श्रीरामगीता | Shriramgita

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Shriramgita by विजय सिंह - Vijay Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( & ) चिकित्सालयों में नियुक्त किया । साथ ही श्रायुवैंदिक शास्र की उन्नति के लिये ापने एक “ विजय श्रायुवेंदिक झोषघालय ” एक स्वदेशी वैय हारा स्थापित कराया । झापका प्रेम एकदेशीय नथा किन्तु सावमौमिक था । यह तो झवरय दी है. कि ४ 0७०संछ षा ० ४००९ परन्तु साथ मै यह्‌ मी है कि 7094 ,५०९९.१०४ धनर” ज्ञाप स्वदेशी राज्य के लिये श्र स्वदेशी प्रजा के लिये बहुत कुछ करते थे ; पर साथ ही श्रवसर श्रनि पर विदेशी छात्रों की भी सहायता करते थे । श्रतएव कई विदेशी ` छात्रों को जिनसे कोई सम्बन्ध या परिचय न था, छात्र-दूत्ति श्र झनेक॑ संस्थाओं को 'चन्दा दिया करते ये। झवघ म्रान्त ` झन्तर्गत ख़ैरी में श्रापके सुनाम से “ विजय डिस्पेन्सरी ” युनानी चिकित्सालय स्थापित हुआ जिसमें श्राप स० २००] धार्षिक चन्दा दिया करते थे । कभी कोई ऐसा समय न गया, कि किसी संस्था या व्यक्ति ने श्रापसे याचना की हो श्ौर उसे बिमुख जाना पड़ा हो । इस थोड़े से झापके ८-१० साल के खतन्तर शासन काल मे आपने लगमग रु० ४१७७०) घार्मिक ` क्यौ मे व वनो की सहायता मे भदान किये श्रौर न्य “ -संस्थाश्नं को य° ५४७२८] भदान कयि । राजानो के लिये यह आवश्यक द, कि ८ किती घम्म से हेष न रक्तै » राश्य मे अनेक मतावलम्बी जन निवास कते है । झतएव उनके घर्म्म से सददालुभूति रखना राज्यपर्स्म के मुख्य झंगों मेंसे एक अंग है। आप मोइम्मदी घर्म्म का भी झादर करते ये] जैनियों के उतवों मे मी सम्मिक्लित होते ये श्रौर श्रीमान्‌ के जेव . खर्च से सहायता पानेवाललो म समी धम्मो के ज्यक्ति सम्मिक्ित थे |




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