प्राचीन भारत में रसायन का विकास | Prachin Bharat Men Rasayan Ka Vikas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
851
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बेदिक काल ३
वेदिकं कालीन अन्न
यजुर्वेद के एक प्रसिद्ध मंत्र म ब्रीहि (षान), यव (जौ), माष (उदं), तिज,
मुद्ग (मंग), खल्व, प्रियंगु, अणु, श्यामाक, नीवार, गोधूम और मसूर का
उल्लेख है ।
तैत्तिरीय संहिता में भी इन्ही अन्षों को गिनाया गया है। “खल्वा:” का अर्थं
सायण ने. “मुद्गेम्योधपि स्थूलबीजा:” किया है । मसुर का उपयोग मूंग के समान
ही सूप (पेय रस) बनाने में किया गया है (मसुराः मुदुगवत् सूपहेतवः) । सूक्ष्म
वालियो (शालिधान्य ) का नाम अणु बताया है । श्यामाक एक विशेष ग्राम्य-घान्य
है ओर नीवार आरण्य-घान्य (जंगली अन्न) है । कुत्सित यव को कूयव नाम दिया
गया है।*
१. ब्रौीहयश्च से यवाइच मे साबाइच से तिलाइच मे मुदुगाइस मे खल्वाइच मे
भियङ्वदव मेऽणवश्च मे श्यामाकाश्च मे नीवाराश्च मे गोधघूमाइच में
मसुरादख मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ! (यजु° १८।१२)
यव (ऋष् १।६६।२; १३५।८; २।५।६) ; यव के अतिरिक्त ऋग्वेव मं भाष,
तिल, मुदुग, खत्व, प्रियंगु, इयामाक, नीवार और गोघूम--ये कोई शब्द नहीं हे ।
यबः (अथवं० ८।७।२०; ९।१।२२; २।१३; ११।८११५; २०।१२७।१०)
व्रीहि (मयवं० १।६।१४; ६।१४०।२; ८।७।२०; ९।१।२२; ११।६।१३)
व्रीहि आर यव साथ-साथ (अणवं० ८।२।१८; १०।६।२४; ११।६।१३
ओर १२।१।४२)
माषऽमाज्यम् (अथर्व ० १२।२।४) ; भाष (अभवं ° ६।१४०।२ ओौर १२।२।५३)
तिल (अथवं ० २।८।३; ६।१४०।२; १२।२।५४; १८।३।६९; ४।२६;
४३; १८।४।३३-३४) । तिल के पलाल का भी उल्लेख है ।
श्यामाक (अथर्व० २०१३५ १२)
अयर्व० में मुद्ग, खत्व, प्रियंगू, अणु, नीवार, गोधूम गौर भसुर का उल्लेख
नहीं है ।
२. प्रभु च से बहु च से भूयदच मे पूर्णड्य में पुर्णतरऊच में क्षितिदच में कृयवाइच
मेऽस्रञ्व मेऽदुञ्च मे व्रीहयश्च मे यवाश्च मे माणा मे तिला मे मुद्गाश्च
मे खल्वाश्च मे गोधूमाइ्च मे मसुराइच में प्रियज्ददच मेश्जवदज में दयासा-
काह मे नोवाराइच में । (तेसिरोय संहिता ४।७।४।७)
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