स्वर्गीय हेमचन्द्र | Sawargiy Hemachandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दे हैं । साथ दी उनकी बुन्देलखंडी बोलीकी स्वाभाविक मधुरताका पुंट भी उसमें दिया हुआ हे । हैमचन्द्रकी स्पष्टवादिताके ये उदादरण हमारे आलोचकोंके लिये अनुकर- णीय है । हेमचन्द्र जनेन्द्रजीको बड़े भाईके समान ही आदरणीय मानता था, पर जजके आसनपर बैठनेके बाद वह अपने पूज्य दादाजीकी भी रिवायत नही कर सकता था । सादित्यिकं शिष्ताके पीछे वह र्डृ लिये घूमता था क्योकि उसकी दृष्टम यह नैतिक निवैकताकी जननी थी । ~ भरत्येक मानवका स्वर्तत्र व्यक्तित्व आज सम्पूर्णं संसारम जो भयंकर विग्रह हो रहा है ओर जो अनाचार हो रहे हैं उन सबके मूलमें है कुछ मनुष्योंकी यह निन्दनीय प्रवृत्ति कि वे जन- समुदायको केवल अपने ढडज्जमें ढालना चाहते हैं, अपने ढर्रपर चलाना चाहते हैं । और चूँकि संसारमें भड़ोंका ही बाहुल्य है, इस लिये इन डिक्टे- टरोंको अपने असदुद्देशमं सफलता मी मिल जाती है । इसीलिये किसी भी विवेकशील पाटककी तबीयत हेमचन्द्र जैसे युवकको देखकर खुश हो जाती, क्यो कि वह किसीकी भी भेड़ बननेको तय्यार नही था । अपने प्रिय विषय अराजकवादका भी मुझे कितना उथला ज्ञान है, इसका पता देमचन्द्रके पत्रोंसे लगा यद्यपि मुझमें इतना नैतिक बल नहीं था कि उसके सामने अपनी हार मान लेता । “” अपनी कद्दे जाना और दूसरेकी न सुनना ” इस अमोष अस्त्रसे जब मैं हेमके पूज्य दादाजीको ही अनेक वाद-विवादोंमें पराजित कर चुका था, तब देमसे पराजय स्वीकार करनेकी उदारता मुझमें कहीं थी १ इतने दिनों बाद उसके पत्रोंको पढ़कर मैं अनुभव करता हूँ कि उसके द्वारा की हुई मेरी आयोजनाओंकी आलोचना यथाथे थी । प्रेमीजीकी यह भूल थी ( ओर उसे स्वीकार करके उन्होंने प्रायश्चित्त भी कर लिया है ) कि वे देमको कोरमकोर अनुवादक या व्यवसायी बनाना चाहते ये जब कि उसकी प्रतिमा स्वाध्यायशील स्वतंत्र-विचारक बननेकी थी । अनेक माता-पिताओसि यह भूल हो जाती हे, इसलिये प्रेमीजीक्रा अपराध क्षम्य ही था । '. . भगिनी निवेदिताने अपनी मृत्युके पहले किसी बौद्ध अन्थसे एक प्रार्थना अँप्रेजीमें अनुवाद करके अपने मित्रोंको भेजी थी :--




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