स्वास्थ्य विज्ञान पर एक भारतीय वैज्ञानिक की नवीन खोज | Savasthy Vigyan Par Ek Bharatiy Vaigyanik Ki Naveen Khoj

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Savasthy Vigyan Par Ek Bharatiy Vaigyanik Ki Naveen Khoj by माधो प्रशाद - Madho Prashad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८) [व ]--झतः अवस्था १ और रेमे भूस्थल पर प्रत्यक स्थान पर ह्र समय कुलं नकं दुगन्ध नक्ता करदी रै यह जौ धारयो क शरीर म अवस्था नं८ २ में भी निकलती है । जा पाचन क्रिया से पैदा होती हैं. ऋ्न्तर ऋबल यह है कि अवस्था १ कौर ३ से तो यह विकार पैदा करती हैं परन्तु अवस्था २ में यह मनुष्य के लिये पाचन क्रिया में उप- यागी होती हैं इन तीनों अवस्थानां में परिचतन अर दुर्गन्थ की उत्पात्त खयं हाती रहती है न्तर एतनः ६ शचस्था त~ मे यह पारवतन क्र उमस दुगन्ध समुष्यों के लिये पूंजी का घाटा देने वाली होती है अवस्था नं0 २ में सनुष्यां के स्वास्थ की ब्द्धी करती है! आर अवस्था न० ३ मं मनुष्यों के स्वास्थ को रोग उत्पन्न करती है । यही कारण हैं कि खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखते के लिये श्र मनुर्प्यों फ शरीर म॑ पाचत बुद्ध करसे के श्र विष सो नए द्रत क दिय नये २ साधना का ाविष्कार हुआ | जिन पर घाणी मात्र वा जीवन निर्भर हैं सश्र म मनुष्य क जीबन पाषण मं ऊपर की हृड्‌ दीनों अस्थात्यां का हाना आबश्यक हैं इसके थिना मनुष्य का जीवन सम्भय नहीं अर यह्‌ परथते पगता राक थी नहीं जा सकते । घ्म गह्‌ दख चुके है कि भूस्थल पम तीनां अपम्थाओं में एत्येफ स्थान पर कुल न कुछ दुगन्घ पदा होती ही रहती हैं । अत: जहाँ कहीं भी मनुष्य रहते हैं वर्ड पर दुगन्व तैदा हाना निशित दै भोर नानव न का दुर्गन्ध उत्पत्ति से घनिष सम्बन्ध है । बुद्धितान बतुष्य इस दगन्व का व्पनों बुद्धिमना आए तये र साधतों से कम करते रहते हैं अर जो कु मो दुगन्व पद दा जाता है उसे ताघता से सघ कर ई है । इसके विपरत मुख लोगों का न ता दर्गन्ध उत्पत्ति परह) वश चलता है, न इसे नर करने में हो सफल होते हैं श्रीर परिणाम स्वरूप रोग ग्रसित हो जाते हैं । [न] बह सड़ाव गलाब से उत्पन्न हुई दुगन्ध 'अपनी -उत्पत्ति के




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