अन्योक्ति कल्पद्रुम | Aanyokti Kalpadrum

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Aanyokti Kalpadrum by दीनदयालु गिरि - Deenadayalu Giri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ७ _ प्रचार इतना विस्तृत हो चुका है कि पंजाबसे लेकर पूर्वी बिहार- तकके लोग कहावतकी तरह कहा करते हैं । श्री° दीनद्यालुगिरिकी कुंडलियां भी लोकप्रिय हो चली हैं। गिर्धिर कविरायकी रचना सीधा नीतिमय उपदेश है, पर दीनदयालुजी दूसरोंके बहाने उपदेश देते हैं। हिन्दी यह कल्पद्रुम सबसे बडी अन्योक्तिमय रचना है, इसमें कविकी लेखनीसे कोई भाव छूटा नहीं है । इनकी कुण्डलिया पढ़िये । साफ जान पढ़ता है कि मानों कोई संन्यासी किसी पदाथे- को सम्बोधन करके उपदेश कर रहा है। संन्यासीका और कर्तव्य ही कया है ? उपदेश सीधा सादा कट उपदेश भी कर सकता है, परन्तु उपदिष्ट वा शिष्यको श्राह्म भी तो होना चाहिये ! कड़वे बचन शिष्यको भी क्या अच्छे लगते हैं ? विष्णुशस्पाने राजकुमारोंको कहानी ( विशेष निबन्धना अन्योक्ति ) द्वारा शिक्षा दी थी । श्रच्छे उपदेशक इस ढंगसे बात कहते हैं कि सुननेवाले दोषी होते हुए भी बुरा न मानें, वरन्‌ अपने याचरणको उपदेशके ्रनुसार सुधारे । ्नन्योक्ति अलङ्कार दवारा इस संन्यासीकी शिक्षाएँ भी अपूर्व हुई हैं । कवि फूलसे कहता है “प्यारे करै गुमान जनि सुन प्रसून सिख मोरि । तो समान यहि बागमें पलि भरे है कोरि॥ फलि भरे है कोरि, बहोरि किते विनसेहै। या बहार दिन चार गये पुनि भ्रीषम ऐहैं ॥। वरन दीन दयाल न कर सारंगहि न्यारे। तो गुन जाननिहार बड़ हितकारक प्यारे ॥”' प्यारे फूल, मेरी सीख सुन, श्रपने रूप रङ्कपर, सुगन्धपर, कोमलता- पर गवं न कर । तुमकमें यह सब गुण हैं सही, पर यह कोई अनोखी बात तो नहीं है! तेरे जैसे फूल इस बागमें फूल फूलकर एक नहीं करोड़ों ऊड़ गये हैं और करोड़ों आगे भी कडइ जार्येगे, यौर फिर यह बसन्तकी ऋतु




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