गीता माता | Geeta Mata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
522
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गीता-चोघ १५
उसमें राग पैदा हुश्रा, जिसे पराया जाना, उसमे द्ेष-
वैरभाव श्रा गया । इसलिए भेरे-तेरे' का भेद भूलना
, चाहिए, या यो कहिये किं राग-दवेषको तजना चाहिए)
गीता श्रौर सभी घमे-ग्रथ पुकार-पुकारकर यही कटृते
हँ । पर कहना एक बात है भर उसके श्रनुसार
करना दूसरी बात । हमे गीता इसके श्रनुसार करनेकी
भी दिक्षा देती है। कैसे, सो भ्रागे समभनेकी कोशिश
की जायगी ।
दूसरा अध्याय
सोमप्रभाति
१७-११-३०
भर्ुन को ज्नब कुछ चेत ग्रा तो भगवानने उसे
उलाहना दिया श्रौर कहा कि यह मोह तुके कहास
भ्रागया? तेरे-जंसे वीर पुरुषको यह शोभा नही
देता । पर भ्र्जुनका मोहं यो टलनेवाला नही था।
वहु लडनेसे इनकार करके बोला, “इन सगे-सबंधियो
श्रौर गुरुजनोको मारकार, मूके राजपाट तो दरकिनार,
स्वर्गका सुख भी नहीं चाहिए 1 मै कतेव्यविमूढ हो
गया हू । इस स्थितिमे धमं क्या है, यह मुझे नहीं
सूता । मै आपकी शरण हु, मे धमं बतलाइये {”
इस भांति अर्जुनको वहत व्याकुल श्रौर जिनासु
देखकर भगवानको दया प्राई। वह उसे समझाने
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