दिवास्वप्न | Divaasvapn

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Divaasvapn by गिजुभाई बधेका - Gijubhai Badheka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कि प्रयोग का आरम्भ 9 सबने अपनी टोपियां देखीं । किसी विरले की ही टोपी अच्छी थी । मैं बोला - देखो तुम्हारे कोट के बटन साबुत हैं? फिर मैंने कहा - आज और ज्यादा जांच नहीं होगी । कहानी में देर हो रही है । यह कहकर मैंने कहानी शुस कर दी । कहानी के बीच में एक लड़के ने पूछा- जी कहानी की किताबों का क्या हुआ? मैंने कहा - एक-दो दिन में ले आऊंँगा । हाँ जो कहानी की किताबें पठना चाहते हों वे अपने हाथ उठाएँ । हर एक विद्यार्थी का हाथ उठा हुआ था । मैंने पूछा - तुमने कहानी की जो -जो किताबें पढ़ी हैं उनके नाम तो बोलो । कुछ लड़कों ने दो-चार कहानियाँ पढी थीं । वे चौथी कक्षा तक आ चुके थे फिर भी उन्होंने पाठ्यपुस्तकों को छोड़कर और पुस्तकें बहुत ही कम पढ़ी थीं । मैंने पूछा - तुममें से कोई मासिक-पत्रिका भी पढ़ता है? दो जनों ने कहा-जी हम बाल-सखा पद्ते हैं । मैंने कहा - अच्छी बात है । मैं कहानियाँ लाऊंगा और तुम सब पढ़ना । इतनी अधिक कहानियाँ लाऊँगा कि तुम पढते-पढते थक जाओगे । सब बहुत ही प्रसन्न दिखाई पढ़े । फिर कहानी आगे चली तो घंटी बजने तक चलती ही रही । छुट्टी हुई और मैंने कहा - भाई एक बात सुनते जाओ । गोले पर बैठकर सुनो । कल ये नाखून कटवाकर आना । खुद काट सको तो खुद काट लेना नहीं तो बाबूजी से कहना या फिर नाई आए तो उससे कटवा लेना । एक बोला - जी मैं तो अपने दाँत से काट लैूँगा । मैंने कहा - नहीं भाई ऐसा मत करना । नाखून या तो नहनी से कटते हैं या छुी से । मैंने फिर कहा - एक तमाशा हम और करेंगे । सब बोले - वह क्या ? तुम नंगे सिर पाठशाला आया करो । यह गन्दी टोपी किस काम की? और हमें टोपी की जरूरत ही कया है ? सब हैंस पड़े । कहने लगे - नंगे सिर मदरसे भी आ सकते हैं भला? प्रधानाध्यापक नाराज नहीं होंगे?




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