ए क्रिटिकल स्टडी ऑफ़ सिद्ध हेमा सब्दानुसासना | A Critical Study Of Siddha Hema Sabdanusa Asana (1963)ac 3953

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ 8 ] शंब्दानुशासनजातमस्ति, सस्माशच कथमिदं प्रशस्यतमभमिति ? छ्यते तद्धि अतिविस्तीण प्रकीणेश् । कासन्त्रं तहिं साधु मविष्यतीति चेन्न तस्य सङ्कीणत्वात्‌ । इदं तु सिद्धहेमचन्द्राभिधानं नातिविस्वीण न च सङ्की्णमिति अनेनैव शब्द्‌-व्युत्पत्तिभवति । अतपच स्पष्ट है कि सिद हेमश्षब्दालशासन सन्तुङित शौर पश्चाक़पण है । इसमें प्रत्येक सूत्र के पदच्छेद, विभक्ति, समास, अथ, उदाहरण भौर सिधि ये छुट्टी अंग पाये जाते हैं । उपजीव्य-- यों तो जाचाय हेम ने भपने पू्ववर्ती सभी ब्याकरणों से कुछ न कुछ ग्रहण किया है; पर विशेषरूप से इसके व्याकरण के उपजीष्य काशिका, पातज्जख महाभाष्य जौर शाकटायन ब्याकरण हैं । इन्होंने उक्त अर्थों के विस्वं विषो को थोड़े ही द्दो में बची निपुणता के साथ लपने सूर्न्रा एवं बृत्तियों में समाधिष्ट किया है, जिससे उसे समझने में विशेष आायास सहीं करना पक्ता! हम यष केवरं शाकटायन के परमाव काष्ट विश्छेषण कर यह दिखलाने का प्रयास करेंगे कि हेम के रहण मे भी मौलिकता भौर नवीनता है । नदी के जल को सुन्दर कंचन के कलदा में भरने के समान सूत्र जौर उदाहरणों को प्रहण कररेने पर भी उनके निषध क्रमक वेशि्टय ने एक नया ही चमर्कार उत्पन्न किया है । सूत्र शाकटायन सूत्राछु सिद्धदेम० सूत्राइ अप्रयोगीत्‌ १।१।५५ १।१।३७ आस: १।१।७ ७।१६१२० सम्बन्धिनां सम्बन्धे १।१।८ ७।४११२१ बहुगण भेदे १।१।१० १।१।४० कं समासेऽध्यधंः १।१।११ १।१।४१ क्रियार्थो चातुः १।१।९२ ३1३३ गस्य्थंवदोच्छः १।१।६० ३।१।८ तिरोज्न्तथों १1१1१ ३१ ३।१।९ स्वभ्योऽधिः १।१।३४ .३।१११३ भरध्वं बन्धे १।१।६८ ३।१।१६ . परः १।१।४४ ४।४।११८ पट, ------------ --------------- -----*~---.-- १. सुतरा, धानुपाट, गणपाठ, उणादि ओर्‌ लिङ्गानुशासन ये पच व्याकरणकेर्जय है । इन पचो से समन्वित -साकरण पद्राङ्ग कदन्ता है ।




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