नागरी प्रचारिणी पत्रिका | Nagari Pracharini Patrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यद्गान ९५
जक्षणारूपकलापिनीपजन्य
मानुसु्ता-लता-पारिजाद !
षोडशस्मी सदस्चष्धुः प्रसार
हार-सार-मसार-मोह्न-शरीर !
'विजयराघव सूपाल-भजन-कोल
केलु मोच्येद्राज गोपाल ! नीकु ॥
यह देवतास्तोत्र है पर इसमें कवि का नाम मी जोड़ दिया गया गया है} शुप्रीव
विजय' में कवि का नाम नहीं श्राता । “सुप्रीवविजय में कवि कृतिपति की प्रशंसा करता
है जो प्रबंधघशेली की विशेषता है न कि यक्तगान की । इसलिये विजवराघव
देवतास्तोश्र के श्रर्नतर 'कैवार' को जोडते हैं ।
राज गोपाल चरणारविंद भजनानंद सांद्र !
रघुनाथनायकं रन्नाकरावतीणे संपू पूर्णिम चंद्र !
पांड्च तुंढीरादि बेरि गज कंठीरव किशोर !
कलावत्यंबिकाकुमार ! चंद्रोपेंद्र सुरेंद्र नंदन-
कंदपंकोटि सौंदयंघुयें ! जीणेकरणाटक साम्राध्य
सिंदासनास्थापनाचा्य ! समरसभयाष्वरिव
समस्त निस्तुलवुलापुरषादि मषा दनापदान
प्रचर्तितकीर्तिधौरेय ! संगररंगगांगेय !
प्रतिषिनि बहू स्च व्राह्णाभिष्ट मृषटान्न दान
दीक्षाधघुरीण ! मानिनीनूतनपंचषाण ! विश्व-
विश्वंभराभरणविचक्तण दक्षिण भुजादंड !
शाश्वकैश्वयं धौरंघयें - मेरुकोदंड ! ददिण-
सिंहासन पष भद्र ! कल्ियुग-रासभद्र ! चतुर्विध.
कविता निवहक ! सावंभौम बिरुदांगद विराजमान
चरणांभोज ! फषि-समाज-मोज ! जनकचरण-
राजीव-सेवा-बिधायक ! विजयराघबनायक !
तदनतर वचन मे नायक श्चादि का परिचय यौ दिया जाता है
(स्वामीकृतः विप्रना रायणचरित नामक विचित्र नाटक श्रमिनय कुशलतापूर्वंक
प्रदर्शित किया जाता है एवं सुनाया जाता है; सावधान होकर सुनिएु (१
के. पराक ! स्वासिवारु हवसिंखिन विप्रमारायणयरित बनु दिखित्र नाटकंबु सटपटिस
गराजुर्पिच विनिर्पिचेसु । विननवधघरिंपुमु । पराकु ! स्वामि ! पराकु !
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