भ्रम विध्वसनम | Vhram Vidhnvwasanam (1980) Ac 767
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
524
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( हो )
सद्वितीय अभ्यास धा । मापने अपरते नवीन रचित ग्रन्थों से जैसी जिन धर्म की
महिमा बढ़ाई है उसका वर्णन नहीं हो सक्ता । अ।पका शुभ जन्म मास्वाड़ में रोयट'
नामक ग्राम में जोशवंणस्थ गोला जाति में सम्बत्ू १८६० आा़्विन शुक्का २ के दिन
हुआ था ।. आपकें पिता का सम आईदानज्ञी और माता का नाम कलुजी था ।
जापने करप कव्यात्तरों के लिये “श्रीभगवती की जोड़” आदि अनेक रचता द्वारा
मूमिपर अपना यश छोड़ कर सम्वत् २६३८ भाद्रपद कृष्ण १२ -के दिन स्वरगं के
लिये प्रस्थान किया ।
पूज्य श्रीजझयाचाय के अनत्तर पश्चम पट पर श्री मघवा गणी (मघराजजी)
सुशोभित हुए । भापकी शान्ति मृत्ति और व्रह्मययक्रा तेज देख कर कवियों ने आप-
को मघवा ( इन्द्र ) की ही रपमा दी है।. आप व्याकरण काव्य कोपादि शास्त्रों में
प्रखर विद्धान् थे । आपका शुभ जन्म वीकानेर राञ्यान्तगन च दासर नामक तगर
में ओोशवंशस्थ वेगवानी नामक जानि मे संम्बन् १८६७ चैव शक्ता ११ के दिन
छुआ । आपके पिताका नाम पूरणमलजी और माता का नाम वननाजी था । आप
आनन्द पूर्वक जिन माय की उद्रि करते ण सम्वत् १६४६ चैत्र रृप्ण ५ के दिनि
खगं के लिप प्रम्थित हुप।
पूज्य श्रीयत पणी के अनन्तर छर पट प्रर श्रीमाणिकचन्द्रजी महाराज
विराजमानहुए | आपका शुम जन्म जयपुर नामक प्रसिद्ध नगर मैं संवत् १६१२ भाद्र
करप्णछ कं दिन आंशवंणस्थ खार श्रीमान नामक जाति में हुआ । आपके पिना का
नाम हुकुपचन्द्रजी और माता का नाम छोटांजी था । आप थोड़े ही समय में समा -
जको अपने दिव्य गुणों से विकाशित करते हुए संबत् १४५४ वा लिक कृष्ण ३ के
दिनि खगं वासी हुए ।
पूज्य श्वीमाणिक गणी कै अनन्तर सत्तम पटपर श्री डागणी महाराज विरा-
जमान हुए आपका शुभ जन्म मारवा दैशम्थ उजयिनी नगर मे ओशवंशस्थ पीपाड़ा
नामक जाति में संवत् १६०६ आपाढ़ शुक्का ४ के दिन हुआ } आपके पिता का नाम
कनीराजी और माता का नाम जडाचाँजी था जिनलोगोंने आपका शेन किया है
वे सेमभ्ते दी हैः कि आपका मुष्व मण्डल घ्रह्मचयंके तेज़ के कारण सूगराज मुख
सम जगमगाता था । आप 'जिनमागं की पणे उन्नति करते हुए संवत् ११६६ भाद्र
पद शुक्का १२ के दिन स्वर्ग को पघार गये ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...