बापू के पत्र | Bapu Ke Patra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४. ˆ वापुकेषपत्र
गी कि इस जीवन मे किस तरह महात्माजी के सहवास के योग्य वन सरू ।
मेरी राय में आज भारत में ग्रीवों के साथ यदि कोई एक-जीव हुआ है
तो वह महात्माजी हैं । महात्माजी मानो 'कारुण्य की मूर्ति हैं । गरीबों के कष्ट '
टूर करने में अमीरों के साथ भी अन्याय न होने पावे 'औरभिसन:भिन्न वर्गों के
वीच ट्षष भाव तनिक भी पंदा न हो; इसकी वह हमेशा चिन्ता रखेंते हैं। इसी-
लिए भारतवषं के सव धमे, पन्थ ओर वग के लोग उनको आत्मीयता कौ दृष्टि
से देखते हँ । चातुवेण्यं का तौ मानो उनमें सम्मेलन ही हृञा है । भारतवपं पर .
उनका जो असीम प्रेम हं उसके लायक यदि हम भारतवासी वनतो
भारत का उद्धार अवश्य हो जाय ।
मेरी समझ में तो महात्माजी का सहवासं जिसने कियो हौ `या उनके *
, तत्वों को समञ्चने कौ कोरिदा की हो, वह् कभी निरत्साही नहीं हौ सकता ।
'वह हमेशा उत्साहपुर्वक अपना कत्तेव्य पालन करता रहेगा; क्योकि देश.की'
स्थिति के सुधरने में--स्वराज्य मिलने में--भले ही थोड़ा ..विलम्ब हो,
परन्तु जो व्यक्ति महात्माजी के बताये माग से कार्य करता रहेगा; मु
विश्वास है कि वह अपनी निजी उन्नति तो जरूर कर लेगा; अर्थात् अपने लिए. ` `
ता स्वरज्य वह् अवश्य पा सकता हू ।
न
मुझे अपनी कमजोरियों का थोड़ा ज्ञान रहने के कारण मेंने वापू को
गुरु नहीं वनाया, न माना; 'वाप अवश्य माना है। वह भी इसलिए
कि दयायद उन्हें बाप मानने से मेरी कमजोरियां हट जावें |
जिस दिन मैं महात्माजी के पुत्र-वात्सल्य के योग्य हो सकंगां वही समय
मेरे जीवन के लिए धन्य होगा ।
--जमनालाल बजाज
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