हरिवंश पुराण | Harivansh Puran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महाकवि पुष्पदन्त १६
पुम्भव है कि उनका कोई देसी राब्दोका कोश ग्रन्थ भी स्वोपङ्गयीकासहित हो जो आचार्य
हेमचन्द्रके समक्ष था ।
कविके आश्रयदाता
महाभात्य भरत । पुष्पदन्तने दो आश्रयदाताओका उद्ेख किया है, एक भरतका
और दूसरे नन्नका । ये दोनों पिता-पुत्र थे ओर महाराजाधिराज कष्णराज ( तृतीय ) के
महामात्य । कृष्ण रा्कूट वंशका अपने समयका सबसे पराक्रमी, दिखिजयी और अन्तिम
सप्राटू था । इससे उसके महामात्योकी योग्यता और प्रतिष्ठाकी कल्पना सहज ही की जा
सकती है । नन शायद अपने पिताकी मृतयुके बाद ही महामाल इ होगे । यद्यपि उस काठमे
योग्यतापर कम 'प्यान नहीं दिया जाता था; फिर भी बडे बडे राजपद प्रायः वानुगत होते ये।
मरतके पितामहका नाम अण्णस्याः पिताका एयण ओर माताका श्रीदेवी था । वे
कोण्डिन्य गोत्रके ब्राह्मण थे । कहीं कहीं इन्हे भरत भ भी किला है । भरतकी पत्नीका नाम
ठुन्दव्वा था जिसके गर्भे नन उत्पन इए ये |
भरत महामात्य-वंरामे दी उत्पन इए ये परन्तु सन्तानक्रमसे चढी आई हुई यह ठकष्मी
( महामात्यपद ) कुछ समयसे उनके कुरुते चटी गई थी जिसे उन्होने बडी भारी आपत्तिके
दिनेमिं अपनी तेनखिता ओर प्रमुकी सेवासे फिर प्रात कर ख्या था |
भरत जैनधर्मके अनुयायी थे । उन्हे अनवरत-रचित-जिननाथ-भक्ति और जिनवर-
समय-प्रासाद-स्तम्भ अर्थात् निरन्तर जिनभगवानकी भक्ति करनेवाले और जैनशासनरूप
महक स्तम्भ ठा है ।
कृष्ण तृतीयके ही समयमे ओर उन्हौके सामन्त अरिकेसर्राकी छत्रछायामे बने इए
नीतिवाक्यासृतमें अमात्यके अधिकार बतलाये गये है--आय; व्यय; स्वामिरक्षा ओर राजतत्रकी
पुष्टि । ५ आयो व्ययः स्वामिरक्षा तंत्रपोषणं न्चामात्यानामधिकारः । '' उस समय साघ्रारणतः
रेबेन्यू-मिनिर्टरको अमात्य कहते ये । परन्तु भरत महामाय होगे । इससे माढम होता है कि
वे रेवेन्यूमिनिस्टरीके सिवाय राज्यके अन्य विभागोका भी काम करते थे । राष्ट्रकूट-काठमें
मन्त्रीके ठिए शासज्ञके सिवाय शलक्ञ भौ होना आवश्यक था; अयात् जरूरत होनेपर उसे
युद्ध-क्षेत्रे भी जाना पड़ता था ।
एक जगह पुप्पदन्तने ठिखा भी है कि वे वछमराजके कटकके नायक अर्थात् सेनापति
न
१ महमत्तवेखधयवड गदीर ( सहामात्यवेशघ्वजपरगभीरः ) ।
२ तीनापदिवसेषु वन्धुरहितेनेकेन तेजस्विना सन्तानक्रमता गताऽपि हि र्मा ङ प्रभोः खेवया 1
यस्याचारपदं वदन्ति कवयः सोजन्यसत्यास्पद सोऽय श्रीभरतो जयत्यतुपम. कले कटो साम्प्रतम् ॥
-म० सन १५
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