श्री भागवत - दर्शन | Shri Bhagawat Darshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
228
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एकादशी की उत्पत्ति-कथा १३
एक बार वे सब मिलकर भूतमावन भगवानु भूतनाथ
-भवानीपति की शसर्ख में गये । दंडवत् प्रणाम करने के धनन्तर
उन्होने उदास मन से शिवजी के समीप भपना इल रोया । सब
नकुछ सुनने के श्रनन्तर भगवान् पशुपति ने कहा-- देखो, भया }
-यह पालन भोर दुष्टनाशक सम्बन्धौ क्यं विष्णु भगवानरूके
अधीन है, तुम सेव उन्ही के समीप जामो; वे जो उचित समझेंगे
चही करगे । यद् उनके ही विभागका कायै)
देवता यह् सुनकर शिव्रजी को प्रणाम करके क्षीरसागर
कौ धोर चले। वहा जाकर उन्होने भगवान को शेप शेया पर
सुख से शयन करते हृए देखा । भगवान् श्वपने कमले नयनो
को सूँदे हुए थे । देवताओं ने गदुगद कंठ से भगवान की स्तुति की ।
उनकी स्तुति सुनकर भगवान् ने श्रपने नयनो को कुछ कुछ खोला
“और पूछा--''देवताओं ! तुम लोगों पर क्या क्लेश पड़ा है ।””
देवतानं ने दीघ॑निःश्वास छोड़ते हुए कहा--“अ्जी महा-
राज | हम श्रपने दुःख के सम्बन्ध में क्या कहें । मुर नामक दुष्ट
स्त्य ने हमें स्वगे से मार भगाया है। इन्द्रासन पर तथा समस्त
सोकपालों की पुरियौं पर उखने स्वयं ही भ्रपना अधिकार जमा
लिया है ।” यह सुनकर भगवान् बोले--“'देवताओं ! तुम चिन्ता
मत करो । मैं उस दुष्ट देत्य वो अवश्य सरवा डालूँगा। तुम
“झागि-भागे चलो, मु उसका स्थान बताय्रो 1”
सुतजी कहते--“मुनियो ! भगवानु का भाइवासन पाकर `
-देवता गजना करते हुए उस चन्द्रावती पुरी मे पहुचे जहां वहं
मुर देद्य रहता धा । देवताभौं ने उपे युद्धे के 'लिये ललकारा ।
देवताओं को ललकार सुनकर वह॒ विश्छविजयी भवुर भ्रस-शसों
से सु्नज्जित होकर देवताओों से लड़ने धाया 1 ' देवताओं नेमी
-डटकर युद्ध तिया, रिन्तु उमने भ्रपने.भषोंःसे समी को-मार
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