हिन्दी बाल साहित्य की विविध विधायें | Hindi Bal Sahitya Ki Vividh Vidhayen

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Hindi Bal Sahitya Ki Vividh Vidhayen by रामस्वरूप खरे - Ramswaroop Khare

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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0 साथी के लिए कष्ट उठाने को भौ तत्पर रहता है । जिन बालको को इस अवस्था में साथी नहीं मिल पाते वे काल्पनिक साथी बनाकर उसके साथ रहने का |. आनन्द लिया करते हैं । इसी अवस्था में बालक के चरित्र का विकास हुआ करता |. है और जीवनादर्श के प्रति आकर्षण का आरम्भ भी हो जाता है । चौथी अवस्था में वह बालक नहीं रह जाता क्योकि उसका आकर्षण प्रधान रूप से विजातीयः बालकों के प्रति होने लगता है । लड़का लड़कियों और लड़की लड़कों के प्रति | आकर्षित होने लगती है | जौ .एच. डिक्स ने बालक की आयु को मनोविकास के क्रम के अनुसार पाँच ` । भागों में बाँटा है ' :- | 1. शिशु काल (यह तीन-चार वर्ष की आयु तक रहता है) 2. बचपन (आठ-नौ वर्ष की आयु तक) 3. पूर्व किशोर अवस्था (11 या 12 वर्ष की आयु तक) 4. उत्तर किशोर अवस्था (14 वर्ष की आयु तक) 5. कुमार अवस्था (20 वर्ष की आयु तक) | डक्स ने यह भौ स्वीकार किया है कि इन अवस्थाओ के बीच कोई अमिट रेखायें नहीं हैँ । बालक विशेष परिस्थितियों मे इन रेखाओं का अतिक्रमण करते भी पाये जाते हैं परन्तु एक अवस्था से दूसरी अवस्था में पहुँचने पर एक संक्रान्ति काल तो प्रत्येक बालक की स्थिति में रहता ही है | डिक्स ने पाँचवी अवस्था | कुमार अवस्था को 20 वर्ष तक माना है किन्तु आजकल के बच्चे तो इस आयु | 1. चाइल्ड स्टडी : जौ. एच. डिक्स, पृ. 43




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