ठेलुआ - क़ल्ब | Thelua Kalb
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
149
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ | ठलु्रा-क्लब
(8
दी प्राप्त था कि अध्ययन-अष्यापन का कार्य करते हुए भी
मघुरप्रिय बने रहते थे । इस शरकरा के संन्यास से तौर तो
कुछ फल नक्ष निकला, शायद उसका भाव कुक्कु मदा हो जाय,
और श्रमजीवी लोग जो मसे उसका श्रच्छा उपयोग कर
सकते हैं, उसे सुभीते के साथ खा सक ।
अस्तु, डाक्टर महोदय का संतोष यदि शरकरा के संन्यास
से दी दो जाता, तो भी मैं अपने को भाग्यवान् समकता; किंतु
डाक्टरों के चंगुल में झाकर उससे निकलना कठिन हे । शर-
करा के संन्यास के साथ वे पुस्तकों का भी संन्यास कराना
चाहते हैं |
शारीरिक श्रौर मानसिक खाद्य दोनों ही के साथ श्रपना
पृणं शत्रत्व निभाते है । मूख जीवन व्यतीत करने के लिये
उपदेश देते हैं । बात यह है कि डाक्टरों का दिल मुर्द चीरते-
चीरते मुर्दा दो जाता है, उन्हें साहित्य और संगीत से कया काम :
रोगी को भी श्नपना-सा “निरक्षर-भट्टाचाय” बनाकर
छोड़ते हैं । खैर, क्या किया जाय, जीवन-निर्वाह तो किसी
प्रकार करना ही हे । यदि उनका कहना नददीं करते, तो
पत्ती के वैधव्य का भय दिखलाया जाता है । श्रपना जीवन तो
स्वाहा कर देना कोई कठिन बात नहीं, पर पत्नी के झकाल
वैधव्य ऋनौर बच्चों के झनाथत्व का विचार भी तो करना ही
पड़ता है |
इस भय से डाक्टरों के वाक्यों को भी पाँचवाँ वेद मानना
User Reviews
No Reviews | Add Yours...