महाकवि अकबर | Mahakavi Akbar
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीचन-चरित शरैर कान्य की आलोचना &
सौत से डरते हैं रव पदलेप तालीमप्न थी)
कुछ नहीं आता था अछाह से डरने के सिवा ॥
यह अकवर की कविता का दूसरा काल था । सौभाग्यवश
श्रकूबर का सगति यी ऐसी सिल गई जिसमे पक से पक
प्रकाण्ड विद्धान् मौजूद थे। उन दिनौ लखनऊ के प्रसिद्ध
समाचारपत्र “घावध पश्च” की घूस मचो हुई थो । “वध पञ्च ?
सन् १८७६ ई० से प्रकाशित दाना आरम्भ दुआ । समय के
प्रायः सभी खुवेग्य लेखक इसमें निवन्ध लिला करते थे 1 मुंशी
सज्ादटहुसेन, सुशी उबालाप्रलाद वक्, सितमन्नरीफ, गमौक्र
इत्यादि जिस पत्र के सचालकों से थे ऐसे पत्र का क्या कहना |
समाज, विज्ञान, दर्शन श्रौर राजनीति इत्यादि के ऐसे-पेस गूढ़
मर्मोकता ये लोग हास्यरस के चुटकुले. में इस सरलता के
साथ उड़ा देतेथे कि देखनेवालते दतिं तजे डंगलियां द्वा कर
रट् जति थे । श्रकूवर सी दसी रंग मै रंग ये शरोर पुराने वन्धर्नो
ता तोड़ कर एक नये रंग का आविष्कार किया । सन् १८७५
इ० मे श्रापकीजो चट “पञ्च की प्रशंसा में प्रकाशित हुई थी
उसके क्ट पद नीचे दिये जाते है --
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२ ऐ सोइरे-मखज़न ज़राफूत । वे जोहरे:मादन लतत ॥१॥
ऐ. फृख-दि्े जदाने-उदू। वे धौज-दिहे निशाने-उदू पर
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