महाकवि अकबर | Mahakavi Akbar  

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Mahakavi Akbar   by रघुराजकिशोर वतन - Raghurajkishor Vatan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीचन-चरित शरैर कान्य की आलोचना & सौत से डरते हैं रव पदलेप तालीमप्न थी) कुछ नहीं आता था अछाह से डरने के सिवा ॥ यह अकवर की कविता का दूसरा काल था । सौभाग्यवश श्रकूबर का सगति यी ऐसी सिल गई जिसमे पक से पक प्रकाण्ड विद्धान्‌ मौजूद थे। उन दिनौ लखनऊ के प्रसिद्ध समाचारपत्र “घावध पश्च” की घूस मचो हुई थो । “वध पञ्च ? सन्‌ १८७६ ई० से प्रकाशित दाना आरम्भ दुआ । समय के प्रायः सभी खुवेग्य लेखक इसमें निवन्ध लिला करते थे 1 मुंशी सज्ादटहुसेन, सुशी उबालाप्रलाद वक्‌, सितमन्नरीफ, गमौक्र इत्यादि जिस पत्र के सचालकों से थे ऐसे पत्र का क्या कहना | समाज, विज्ञान, दर्शन श्रौर राजनीति इत्यादि के ऐसे-पेस गूढ़ मर्मोकता ये लोग हास्यरस के चुटकुले. में इस सरलता के साथ उड़ा देतेथे कि देखनेवालते दतिं तजे डंगलियां द्वा कर रट्‌ जति थे । श्रकूवर सी दसी रंग मै रंग ये शरोर पुराने वन्धर्नो ता तोड़ कर एक नये रंग का आविष्कार किया । सन्‌ १८७५ इ० मे श्रापकीजो चट “पञ्च की प्रशंसा में प्रकाशित हुई थी उसके क्ट पद नीचे दिये जाते है -- ५ = भ (म्‌ ह <: [88 २ ऐ सोइरे-मखज़न ज़राफूत । वे जोहरे:मादन लतत ॥१॥ ऐ. फृख-दि्े जदाने-उदू। वे धौज-दिहे निशाने-उदू पर ¢ ७ न्र्‌ भ, ० [ख द दिन रात पही हैं भ्रच तो चच । परचात हैं दिल को इसके पचे ॥३॥ ग छ $ तालीम = रिक्ता 1 ण ५ ॐ क ० ९५- व इः २ हे हास्य के काप दो सेती ! है माइय की खान के रख ॥$1। इ ९ काका च ५ ५ ~ [8 म भाप दी महिमा वटानां 1 [स दु ल गण्ड छ ङञ्खदाद्रन्‌- वाले ।॥२।। घघ तो दिन-रात लोगों में यदी दत्दीत्टाती टै कि दूस




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