साख्यतत्त्वसुबोधिनी सटीक | sankhaytatvasubhodhini tatva

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sankhaytatvasubhodhini tatva  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सांख्यवसुबोधिनी स० । शर स्थत साध्य दै सो हेतु करके साष्यकी सिद्ध होनयिगी अनुमान कदी अन्तरत है इसीतरह ॥ पीनोदेवदत्तः दिवा न ङ्गे ॥ स्थूल देवदत्त दिनमें भोजन नहीं करता है और भोजन से बिना स्थूल- ता होती नहीं इसवास्ते रात्री मेँ भोजन अवश्य करताहोगा अव यहांपर पीनत्व व्याप्य हे और रात्री भोजन तिसका व्यापक है केसी ग्या होने से शरता्थीपत्तिमी अचुमान के दी अन्ततो जगी प्रथ्‌ कल्पना करनी व्यर्थ है और कोई अतुपलब्धि प्र माणको भी मानता है उस के मतमें अमावका ज्ञान असुपलब्धि प्रमाण करके होता है सो प्रत्यक्ष प्रमाण के अतश्रूत दे क्योकि इन्दरथो करके विषयक ज्ञान होता है ओर इच्ियोँ करके ही तिन के अभाव का ज्ञान भी होता है पथ प्रमाण कल्पना करने की कोई जरूरत नहीं दै इसीप्रकार ओर थी प्रमाणों को इनतीनों के ही जं्तक्त जानलेना इसवास्ते तीनही मरमाण हैं इनतीनों करके ही सब प्रमा्णोंकी सिद्धि होजांबैगी ॥ प्रमेयसिद्धिम्परमाणाद्धि ॥ प्रघानवुद्धि अहंकार पब्चतन्मात्रा एकादश इन्द्रिय पब्चमहासूत पुरुष ये सब पब्चविंशति तत्तहें सोईं व्यक्त अव्यक्तज्ञ इन तीन नामों से कहेजाते हैं ॥ इन तीनोंमें से किसीकी सिद्धिं तो प्रत्यक्ष करके होती है किसी की अनुमान करके किसी की शब्द करके सिद्धि होती है इस वास्ते तीनहीं प्रमाण कहे हैं ॥ ४ ॥ अब प्र माणो के लक्षण को कहते हैं # मु ॥ प्रतिविषयाध्यवसायोदृषटत्रिविधमदमानमाख्याः तम्रतक्लिगर्टिगिपुवेकमाप्तश्वुविराप्तवचनन्व\५॥.




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