स्त्री और पुरुष | stri aur purush
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्त्री और पुरुष
और असदमत कोई हो भी क्यों ? उसकी बात तो यह हे
करि इस घात को सभी मानते हैं कि मनुष्य-जाति नैतिक शियि-
लता से पवित्रता की चोर धीरे धीरे भरगति करती जा रही है
और उपर्युक्त विचार इसके अनुकूल हैं । दूसरे यह समाज और
व्यक्ति दोनों के नीति-विवेक के अलुझूल भी है । दोनों बैपयिकता
की निन्दा ओर संयम की तारीप् करते हैं । फिर ये वाइवल की
रशक्ता के भी अनुकूल है, जो हमारे नैतिक विचारों की बनियाद
में हैं और जिसकी हम डींग मारते हैं। पर वाद् में मेरा यद
खुयाल रालत साचित हुआ ।
पर यह तो सत्य है कि प्रत्यक्ष रूप से इन विचारों की
सत्यता मे कोई शक नदीं करता कि विवाह के पटले या बाद में
विषयोपभोग अनाव्यक है--छृत्रिम उपायों से संतति का निरोध
महीं करना 'वाहिए और स्त्री-पुरुषों को अन्य कार्यो की अपेता
विषयोपभोग को अधिक समददलपू्ण नदीं समना चाहिए 1
अथवा एक शब्द् मे कर, तो विषयोपभोग की अपेत्ता संयम--
जद्यच्य---करदौ अधिक श्रेष्ठ है 1 पर लोग पूते है, यदि नह्यचयं
विपयोपमोग की खयेक्ता श्रे है तो यद स्पष्ट है कि मचुप्य को
श्रोप्ठ सागे दी का अवलस्बन करना चाहिए 1 पर यदि वे ऐसा
करे सो मनुष्य जाति न नष्ट हौ जायगी {`
किन्तु प्रथ्वीतल से मनुष्य-जाति के मिट जाने का डर
कोई नवीन वात नहीं है 1 धाभिक लोय इसं -पर बड़ी श्रद्धा
रखते हैं और चैज्ञाचिकों के लिए सूर्य के ठंढ़े होने के वाद यह
एक अनिवायं वात है । पर हम इस विपय में यहाँ कुछ न कहेंगे 1
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