पंचास्तिकाय प्रवचन भाग १,२,३ | Panchastikay Pravachan (bhag - 1,2,3)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
322
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गाधा १ 3 १२
अव-भवमे मिल जाती है, इसके वडव मौ क्या बद्पत दै । वहणन तो श्रपने उस त्वमे है जो यहा ही सिद्धहोपाता
है जन्यभवमे नहीं, वह तत है शुद्ध ीवस्वरुपका गाढ़ परिचय होना, और पर द्रव्यकी उपेक्षा कर लेना । यहू वात यदि
भ प्राप्त कर सके हो दुखी कोन होगा यह खुद ही दुखी होगा ।
सुगम सत्य सार्गका ही दारण-मंया ! होनहार ठीक है तो सबको सीधे सच्चे रास्ते पर आता पढ़ेगा।
जते सोके को पुष्य हृठकरे तो बह आखिर वह कब तक णे करेगा ? उसे भी संधेरास्ते पर भामा ही पताह मीर
ठेव ही उसका गजाय श्रीर् गान्ति हो सकती है एही यापर दस्तुभोको चिन्ता, शोक मघम, उदण्डता हो तो कां
तकं यह् जीव इनको तिभा सकेगा । भस्तमें सीधे सरल सत्य मागंपर इसे आताही पढेगा जब यह सुखी हो सकता है ।
प्रमुका उपदेश ऐसेही सप्ततत्त्व नौर €पदा्थ आदि ङे वर्णनका पुरक है और इस हो तत्त्वज्ञान से हम आप पार्ति लाभले
सकते है। अतः यह समस्त कथन बिधद है और सब जीदोके लिए शितिकारी है । जीवमें ये कर्म. झाते है तव यह् जौव
मोह राग और द्वंष करता है । जितनी दिप्री में जितनी तीज्रहा मे यह जीव मोह राग ढष करता है उतनी ही अभिक
स्थितिके कमे वषते ह, चिन्हे कमेवन्ध न चाहिए उनका कर्तव्य है कि वे सम्पम्तान बनाए भौर कषाय मद करे । इते
कोका सम्बर होमा. कमं का माना कक जायगा श्रौर दस ष्टौ अपने शुद्ध भात्मतत्त्वके उपयोगसे पहिलेके अपे हए कमं खिर
जायेंगे और खिरते-खिरते निकट ही कोई समय ऐवा आपगा इस सम्यहष्टि जीवका कि सारे कर्म हूर हो जा ।
पुजा और शभिप्रायंका समत्वय-- भला बतलावों तो सट्टी जो कर्मोसे अत्यन्त दूर है । निष्कम है, बकि-
उ्चन हैं ऐसे भगवान को तो हम पूजा बदना करने श्रायें और दिन्ता यह बढ़ायें कि कंसे मेरा घर बढ़े, परिजन बढ़े,
इज्जत बढ़े, यश बढ़े तो यह कितना विरुद्ध काम है। यह सब ढोंग घतुरा हुआ कि नहीं ? पूजते तो हैं तिमंलको ओर
मल सचय फ धूम बनाये हैं तो वह पूजना किम कामका हुआ ? कुछ तो ध्यान दीजिए । इसके पूजनेका यही तो प्रयो-
जन है कि यह भावना बनाएं कि हे प्रभो | अपूर्वं शान्वि भौर आनन्दकी स्मिति ठो तुम्हारी है। मुके यह स्थिति कैसे
कब प्राप्त होगी । शुद्ध देवकी पूजा अपनी शुद्धताक लिए है यही ल्य बनायें प्रमुदर्गने । हे प्रभो । सत्य आनन्दमय तुम
ही हो! मेरे यह् आनन्द शीघ्र प्रकट हो । मेरी ऐसी ही सदृदुद्धि बने कि मैं मोह रागददधसे रहित होकर ऐसे ही
उत्कृष्ट आमन्दकों पाऊं । इन सब परमाधेभूत तत्त्वोंका उपदेश प्रमुने किया है। उनके निर्मल और सष्ट वचन दै । दमे
तीनों लोकका हित करने वाले उपदेशके नायक जिनेत्द्रदेवकों मेरा बारेस्बार नमस्कार हो। इस प्रकार मगलाचरणमे
कुन्दकुग्दाच।र्य देव निर्दोष प्रभुका ध्यान कर रहे हैं।
सवभाषामयता--भगवान की वाणी स्पष्ट रहा करती है मुख्य भाषाएं ६ हैं । कर्माटिको, मागधी माहवी,
लाट, शीण भर गुजरात । इन ६ भ षावोमे जरा विशेष विशेष एकं डानकर इनमें सम्बंधित तीन भाष'ए' झौर हो यथी
हैं। जेसे कर्नाटिकी, तँलगू और तामिल शाद मिलती जुलती हैं ऐसी प्रत्येक बढ़ी भाप मे तीन-तीन भाग हैं, यों १८
तो महा भाषायें हैं और १८ मुख्य भाषावोगि सम्नधितत छोटी-छोटी ७०० भाषाएं हो गयी हैं । इन ७०० भाषावों के श्रस्दर
बहुत सी भाषावीके रूपसे एक समय सभी जीव अपने-ग्रपने भव में भगवोनकी दाणोका स्पष्ट अर्थ ग्रहण करते हैं इसलिए
भु वाणों अत्यन्त स्पष्ट है । भाषाएं कभीनकभी समय पाकर इतना आदल बदल वना देती हैं कि एक तई भाषा दन
जाया करती है ।
सवं भाषे स्पष्टता -पाजसे ढा हनार वर्ष पूर्वेढी यह वात कही जारही है कि ऐशी-ऐसी भाप ऐं थी,
और किमी-किसीके मतसे तो भगवान महावीर स्वामीकों हुए १४ १५ हजार वर्ष हुए भगवान महावीर स्वामीके समय
के सम्बन्धमे दो तोन घ रणाएं हैं जैसे घवलार्मे उत्ते किया है, एक पिदटान्ते तौ १४-१४ हजार वर्ष हो जया करते
हैं । इस निद्धानतसे तो ५-६ हार वर्ष रहे गये हैं पचमकालकि ! और मुख्य तो ढाई हजार वष ही प्रसिद्ध है । अब तो
नई नई श्रनेक भायाए हो गयी है। सर्वजीदोंको मगदान की वाणी उननटमकी भायामे स्पष्ट ज्ञान कराती हैं इसलिए
प्रमुझा वाक्य स्पष्ट है । हर
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