श्री आचारांग सूत्र | Shri Aacharang Sutra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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लोफविजय [११
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आदि मे प्रीति रखने चाले तथा खियो म श्रव्यन्त अ्रासक्ति चाले उन
लोगो को ऐसा ही दिखाई देता हैं कि यहां कोई तप नहीं है, दस
नहीं है आर कोई नियम नहीं है । जीवन और लोगो की कामना
वाले वे मनुप्य चाहे जो बोलते हें रौर इस प्रकार हिताहित से
शूश्य बन जाते हैं । [ ७४]
ऐसे मनुष्य खियो से हारे हुए होते है 1 वे तो ऐसा ही
ही मानते है कि ख्त्ियों ही सुख की खान है । चास्तव में तो वे दुख,
सोद, ल्यु नरक श्र नीच गति (पशु) का कारण हैं । [ ८४ ]
काम भोगो कै दी विचार मे मन, वचन शौर काया से मञ्च
रहने वाले वे मनुस्य श्रपने पास जो ङ्ध धन होता है, उसमें श्रत्यन्त
श्रासक्तं रहते ह शौर द्विप (मनुष्य) चौपाये (पशु) या कसी भी
जीव का वध या झ्राघात करके सी उसको ब्रढाना चाहते हैं । [८०]
परन्तु मजुप्य का जीवन श्रत्यन्त श्रत्प है । जब श्रायुप्य मृत्यु से
घिर जाता है, तो शंख, कान आदि इन्द्रियों का चल कम होने पर
मनुष्य सूढ हो जाता है । उस समय श्रपने कुटम्वी भी जिनके साथ
वद्द बहुत समय से रहता है उसका. तिरस्कार करते हैं । चुद्धावस्था
में इंसी, खेल, रतिविलास ओर श्रृंगार श्रच्छा नहीं. मालुम होता ।
जीवन श्र जवानी पानी की तरह चह जाते हैं, । उस समय चे
प्रियलन मजुग्य की मौत से रहक्ता नहीं कर सकते ! जिन माता
पिता ने बचपन सें उसका पालन-पोपण किया था और चडा होने
पर वह उनकी रक्षा करता था । वे भी उसको. नहीं बचा
सकते । [ दद६-६५ ]
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