स्वामी रामतीर्थ उनके सदुपदेश भाग-26 | Swami Ramtirth Unke Sadupadesh bhag-26

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुत्यु के बाद. # & इस दुनिया मं सारी प्रगति ( 70888 ) प्क चक्रमेया गोलाकार हे । यहदेखो, तुम ज़िन्दा दो, तुम मरत हो । सत्यु के बाद की यह दशा क्या सदा बनी रदेगी ? तुम्हे पेखा कृटन का कोई अधिकार नहीं हे । इस प्रकार का बयान करना घकृति के नियमों के विरुद्ध है । जब तुम कइते हो करि मुप्यु के वाद्‌ अनन्त नरक मोग हे ओर जीवन बिलकुल नहीं हेतव ठम संसारके संचालक रूप अति कटोर नियम की अवज्ञा शुरू करदत दहो | तुम्हें एसी बात कहने का कोई अधिकार नहं है । मजुप्य के मरने के बाद, यदि परसश्वर इसे सदा के लिये नरक में डाल देता दे, तो चह परमेश्वर बड़ा दी वेरशील है । एक मनुष्य अपनी ७० साल की ज़िन्दगी टेर करके ( बिताकर ) सर जाता दै। विचारे को दीक प्रकार की शिक्षा पाने के अवसर नहीं सिल, अपने उन्नत करन के उचित उपाय उस के हाथ नहीं लग । दीन साता-पिता से उस का जन्म हुआ था; जो उस शिक्षा नहीं 'दे सके; जो उखे किसी देवल--स्थान वा 'धपशनर्म्दाय में नहीं ले जा सके; और वह वबिचारा मर गया | इस मञुष्य के पास इंसा क रक्क से रड्जित टिकट नहीं था । तो कया यह मचुष्य सदा के लिये नरक से डाल दिया जायगा? श्रे! ` ज्ञो परयश्वर खसा करता दे वह कया अत्यन्त प्रति हिसा चराय { प्रतिकार परायण वा बदला लेने वाला ) नहीं हे ? न्याय के नाम में इस प्रकार का बयान करने का उच्डे कोइ अधिकार नहीं हे। वेदान्तके अनुसार, मर ज्ञान के बाद किसी मयुष्य का सद्‌ा मुदौ वना रहना आवश्यक नहीं है प्रत्येक मुस्यु के बाद्‌ जीवन दहे, और प्रत्येक जीवन के बाद सत्य । ओर वास्तव में सत्य एक नाम मात्र दे । इमारा उसे बड़ा जूजू ( 0प8००००) बना दूना भारी भूल इ । उस मे कुछ




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