दाराशिकोह | Dara Shikoha

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Dara Shikoha by डॉ० र० चं० मजूमदार - Dr. R. Chan Majumdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किशोरावस्था तथा शिक्षा ५ सस्कृत के विद्वानों को उसने श्राश्॑य दिया उनकी सहायता से उसने भगवदगीता और ५० उपनिषदों का श्रवुवाद किया उसने हिन्दी पर श्रधिकार कर लिया श्रौर उस संवंध्रिय भाषा में उसने भक्ति-गीत लिखे । सक्षेपतः-- उस समय की उदारवादी प्रवृत्तियों का वह केन्द्र हो गया श्रौर हित्दुझ्ों की धारणा हो गई कि वह श्रकबर की श्रात्मा का भ्रवतार है । श्रागामी सतति के लिये दाराधिकोह का नाम दशन-शास्त्र के पण्डित का प्रतीक बन गया । विभाग ३--सगाई और बियोग शाहजहाँ की राजगद्दी के करीब दो वर्ष पीछे विख्यात सेनापति खानजहाँ लोदी ने जो ७ हजार सवारों का श्र्यक्ष था विद्रोह कर दिया ग्रौर दक्षिण को भाग निकला । चूंकि यह भय हुआ कि वह बीजापुर के शासक से जा मिलेगा दवाहजहाँ ने दिसम्बर १६२४ मे दक्षिण को प्रयाण किया । दाह दिविर के साथ दारा ने भी प्रस्थान किया परन्तु उसने किसी युद्ध से भाग न लिया । जब सम्राट खानदेश मे होकर जा रहा था मुमताजमहल ने स्वर्गीय राजकुमार सुल्तान पर्वेज की पुत्री और युवराज के विवाह का प्रस्ताव किया । शाहजहाँ ने इस योजना का हृदय से समथंन किया और झ्राज्ञा दी कि इस विवाह के लिये विशाल परिमारा पर भव्य तँयारियाँ की जायेँ । परन्तु बुहनिपुर में ७ जुन १६३१ १७ जिल्काद १०४० हि० की रात्रि को श्रकस्मात्‌ साम्राज्ञी का देहान्त हो गया । ठीक उसके पहले उसने एक कन्या गौहरभ्रारा बेगम को जन्म दिथा था । लगभग २ई वष॑ की श्रनुपस्थिति के बाद सम्राट राजधानी को वापस श्राया जून € १६३२ परिशिष्ट शादजहोँ छोर मुमताजमहल्न की सन्तान पादशाहनामा खण्ड १ अर० ३९१-३९३ १-हृरुचिसा--श्ागरा मे शनिवार € सफर १०२२ हि० को जन्म । तीन व भर एक सास पीछे श्रजमेर से बुधवार २४ रबी उस्सानी १०२४ हि० को देहान्त । जन्म २० माचं १६१३ ई० तथा मृत्यु १ मई १६१६ ई० । १-बु्दनपुर से शाहजद्दों का राजकीय प्रस्थान-२४ रमजान १०४१ हि० श्रप्रेल ४ १६३२ ई० पाद० 7 झ० ४२२ राजधानी में राजकीय प्रवेश-१ जिलहिन १०४१ हिं० ९ जून १६३२ ईं० सम्राट के पीछे बैठा हुझा दाराशिकोदद अपने पिता के शिर के ऊपर न्यौद्वाबर निसार की वर्षों करता है--पाद० 1 झ० ४२० |




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