हिन्दी में प्रयुक्त संस्कृत शब्दों में अर्थ - परिवर्तन | Hindi Me Prayukt Sanskrit Shabdon Me Arth Parivartan

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Hindi Me Prayukt Sanskrit Shabdon Me Arth Parivartan by केशवराम पाल - Keshavaram Pal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी भाषा की शब्दावली में संस्कृत का भ्रंश भ केलोगः, विल्सन, कोलन्रुक श्रादि विद्वानों ने हिन्दी की दाब्दावली में संस्कृत के श्रश को समस्त शब्दावली का लगमग नव-दरामांद माना है। श्रन्य भारतीय आयं-भाषाश्रों में भी संस्कृत (तत्सम श्रौर तद्‌भव ) शब्द प्रचर संख्या मे पाये जाते हैँ । डा० सुनीतिकरुमार चटर्जी का श्रनुमानदहैकि “श्राजकी किसी भी श्राधुनिक श्रायं-भाषा में संस्कृत शब्दों का परिमाण लगभग पचास प्रतिशत कहा जा सकता है ।' दक्षिण भारत कौ तमिल, तेलुगु, कन्नड, मलयालम श्रादि द्रविड़ भाषाश्रों' तथा ब्रह्मदेश, स्याम, इण्डोनेरिया, मलयद्रीप, सुमाघा, यवद्ठीप, १. एस ° एच° केलोग : ए प्रामर श्राफ .दि हिन्दी लँग्वेज, पृष्ठ ४१-- (४6 129 110 0288 10 {16€ (ल0ाञतल्ा210) त छ८त68 92181111 ताह, 11610 11216 ए) 701 1685 पढ 11116 -{€1115 0 {16 1210226. | २. जे° विल्सन ने मोत्सवथं के मराठी को (द्वितीय संस्करण) के भ्रारम्भमे द्यि हये श्रपने लेख {०९ 0 10८ (ताऽ सिटिकरटड, 222€ श्या) मे लिखा है - (01607006 € {0168568 1६ 28 {18 01011107 {2 (106 -ला {8 2 {6 (161 6191६८६ 3 06 {72666 08€६ {0 8210811 ; 26 {0@18105 2. 81111110 008€7४8.1101 11189 06 1 पड 186 85 10 111€ {00007070 ° 8081६ छात [7 दाद आला 9081 फृपाएपपरिएट 2.4. 1001060 {01715 216 {8.€॥1 110 264८601. ३. भारतीय झ्रायंभाषा श्रौर हिन्दी, पृष्ठ १३७. ४. “सुसम्य द्रविड़ भाषाओं पर झ्रायंभाषा के दोनों रूपों, संस्कृत तथा 'प्राकृत, का प्रभाव पड़ना ईसा-पुर्वे की झताब्दियों में ही श्रारम्भ हो गया था ।.. प्राचीन तमिल मे तमिल वेश में मौजूद प्राकृत शब्दों की संख्या काफी ऑआइचयंजनक है; तेलुगु रौर कन्नड मे भी प्राकृत शब्द उल्लेखनीय संख्या में ह; रौर जहम तक विद्रज्जन-व्यवहूत संस्कृत शब्दों का प्रश्न है तेलुगु, कन्नड तथा मलयालम भाषाये, इनके 'तत्सम' रूपो से, जिनके वणे-विन्यास भी ज्यों के त्यों हैं, बिल्कुल लबालब भर गयीं । तमिल भी इस क्रिया से बच न सकी; हा, उसने भ्राये-शब्दो के वणं-विन्यास का ्रावश्यक रूप से सरलीकरणं या तमिलीकरण श्रवर्य कर लिया । इस प्रकार संस्कृत का हिन्दू जीवन में वही स्थान दक्षिण में भी हो गया, जो उत्तर में था” । सुनीतिकुमार चटर्जी : भारतीय झामें-भाषा श्रौर हिन्दी, पृष्ठ ७१.




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