सूत्रक्रतांग हिंदी | Sootrakratang Hindi

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.41 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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भूमिका . .
पालि पिटकोंका भारतके समकालीन धर्म श्रौर भूगोल -श्रादिके
ज्ञानमें जैसे बड़ा महत्व है, वैसे ही जैन श्रागमोंका भी बड़ा ' महत्व
है । इस प्रकार उनका सनातन महत्व बहुतसे वैसे लोगोंके' लिये भी
है, जिनका धर्मसे विशेष॑ सम्बन्ध नहीं हैं । भारतके इतिहासंकी ठोस
सामग्री उसी समयसे मिलती है, जव कि महावीर श्रौर बुद्ध 'हुये,
श्रौर वह दोनोंके पिंटकोंमें सुरक्षित है । दोनों पिटकोंमें बौद्ध पिटक
चहुत विशाल है। ३२ भ्रक्षरके श्लोकोंमें गणना करने पर उनकी
संख्या चार लाखसे श्रघिक होगी; जेन (श्राचाय-गरि) पिटक (कॉल-
दोषसे ) ७२००० दलोकें हैं ।
_. दोनों की परम्परां उनकी भाषा 'मागधी वतलाती है; जिसका
अर्थ यही है, कि महावीर और बुद्धके समय जो मागधी वोली जाती
थी, दोनों महापुरुषोंके उसीमें ( उस समयकीं लोकभाषामें ) उप-
देश हुये थे। पर ग्रस्थ तो उस समय लिखे नहीं गये, केवल गुरुसे
सुनकर उन्हें दिष्योंने घारण किया । घारण करते पालि पिटकको
(बौद्ध पालि पिंटक को) २४ पीढ़ी श्रौर जैन पिटकको २६ पीढियां वीत
गईं, तव उन्हें लेखबद्ध किया गया । इस सारे समयमें पिटकधघरोंकी भाषाका
प्रभाव. पड़ता रहा ।
भगवान् महावीरका जन्म-स्थान वैद्याली श्रौर भगवान् बुद्धका
जन्मनस्थान लुम्बिंनी (1) रुम्मिनदेई विहार श्रौर उत्तरप्रदेश के दो प्रदेशों में
' है। हर जिला लेने पर वैज्ञाली .याघुनिक बसाढ मुजफ्फरपुर जिलेमें है,
जहाँ से पश्चिममें चलने पर सारन; देवरिया फिर गोरखपुरकी सीमाके
पास ही रुस्मिनदेई चेपालकी तराईमें पड़ती है. ।+ मील
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