सूत्रक्रतांग हिंदी | Sootrakratang Hindi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sootrakratang Hindi by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
की» भूमिका . . पालि पिटकोंका भारतके समकालीन धर्म श्रौर भूगोल -श्रादिके ज्ञानमें जैसे बड़ा महत्व है, वैसे ही जैन श्रागमोंका भी बड़ा ' महत्व है । इस प्रकार उनका सनातन महत्व बहुतसे वैसे लोगोंके' लिये भी है, जिनका धर्मसे विशेष॑ सम्बन्ध नहीं हैं । भारतके इतिहासंकी ठोस सामग्री उसी समयसे मिलती है, जव कि महावीर श्रौर बुद्ध 'हुये, श्रौर वह दोनोंके पिंटकोंमें सुरक्षित है । दोनों पिटकोंमें बौद्ध पिटक चहुत विशाल है। ३२ भ्रक्षरके श्लोकोंमें गणना करने पर उनकी संख्या चार लाखसे श्रघिक होगी; जेन (श्राचाय-गरि) पिटक (कॉल- दोषसे ) ७२००० दलोकें हैं । _. दोनों की परम्परां उनकी भाषा 'मागधी वतलाती है; जिसका अर्थ यही है, कि महावीर और बुद्धके समय जो मागधी वोली जाती थी, दोनों महापुरुषोंके उसीमें ( उस समयकीं लोकभाषामें ) उप- देश हुये थे। पर ग्रस्थ तो उस समय लिखे नहीं गये, केवल गुरुसे सुनकर उन्हें दिष्योंने घारण किया । घारण करते पालि पिटकको (बौद्ध पालि पिंटक को) २४ पीढ़ी श्रौर जैन पिटकको २६ पीढियां वीत गईं, तव उन्हें लेखबद्ध किया गया । इस सारे समयमें पिटकधघरोंकी भाषाका प्रभाव. पड़ता रहा । भगवान्‌ महावीरका जन्म-स्थान वैद्याली श्रौर भगवान्‌ बुद्धका जन्मनस्थान लुम्बिंनी (1) रुम्मिनदेई विहार श्रौर उत्तरप्रदेश के दो प्रदेशों में ' है। हर जिला लेने पर वैज्ञाली .याघुनिक बसाढ मुजफ्फरपुर जिलेमें है, जहाँ से पश्चिममें चलने पर सारन; देवरिया फिर गोरखपुरकी सीमाके पास ही रुस्मिनदेई चेपालकी तराईमें पड़ती है. ।+ मील श्‌




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now