हिन्दी - सूफी - काव्य में प्रतीक - योजना | Hindi Soofi Kavya Me Prateek Yojna
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
411
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१८ हिन्दी-सुफी-कान्य में प्रतीक-योजना
पदाथ प्रतीक
१-हाइडोजन प्र
१-ओंक्सिजन ' 0
३-नाइट्रोजन प
४-फासफोरस 7
किन्तु साहित्यिक प्रतीको के अथं के सम्बन्ध मे प्रयोक्ता तथाश्रोता या
पाठक एकमत नहीं हेते क्योकि इन प्रतीको मे अथे कौ सम्भावनाओं ओर नमनीयता
का पर्याप्त महत्त्व रहता है । वस्तृत: साहित्यिक प्रतीको मं अथं स्फीति होती रहती
है, क्योंकि ये प्रतीक केवल प्रयोक्तासे ही नहीं अपितु पाठक के भी कल्पनः-वोघ
आर उन्नत संवदन से सापेक्षिक सम्बन्ध रखते हैं ।
इसी प्रकार धर्म के प्रतीक भी साहित्यिक प्रतीक से भिन्न होते हैं । धर्म के
प्रतीक मनोरागया सवेगसे संपृक्तन होकर विश्वास-भावना पर निमभंर रहते हैं,
इसी कारण धर्म का कोई प्रतीक तब तक प्रभाव नहीं पैदा करता है जव तक उसके
अनुकूल सहूदय अथवा भावक में विष्वास्-भावना न हो । बस्तुतः साहित्यिक प्रतीकों
मे सावुकेता कौ प्रमृखता रहती है आर धमं कै प्रतीको में चिन्तन तत्त्व को । यों
धर्में के प्रतीक भी एक स्तर पर आकर कला के प्रतीको की तरह रमणीय वन जाति
है 1 यह तव होता है जव पूजा-भाव सहृदय का स्वभाव सिद्ध गुण बनकर उसके
चित्-अस्तित्व का अंश वन जाता है । इस दृष्टिसे हिन्दू-घमं के नाद, विन्द्, ऊ,
रिव, प्रणव इत्यादि भ्रतीकों का विशेष सहव है; किन्तु घमं के कृ प्रतीक ऐसे
भीरैजो सावंजनीनन होकर संकीण साम्प्रदायिक विश्वास पर निभेंर करते हैं;
जसे गणेश का मूषकं विघ्ननाश का प्रतीक है और शिव का न्रिशल न्रिगुणात्मक
शक्ति का । भाव यह है कि धर्म के क्षेत्र में थी वे ही प्रतीक अधिक सफल सिद्ध
होते हैं जिनमें साहित्यिक प्रतीकों की तरह भावोद्वोधत रही क्षमता रहती है । यही
वह सामान्य भूमि है जिसके कारण विज्ञान के कुछ प्रतोकों की तरह धर्म के प्रतीक
भी साहित्य में ग्रहीत हुए हैं । उपासना जगत् के प्रतीक भी काव्यगत प्रतीकों से
सिन्न होते हैं । उपासना के क्षेत्र में उपास्य परन्नह्मा के चिट्ठ, पहचान, अवतार, अंज
या प्रतिनिधि के तौर पर आई हुई नाम रूपात्मक वस्तु को प्रतीक कहते हैं।
लोकमान्य वाल गंगाघर तिलक ने प्रतीक शब्द के धात्वर्थ को बतलाते हुए उपासना
के क्षेत्र में इसके भाशय को बहुत अच्छी तरह व्यंजित किया है “प्रतीक (प्रति--इक )
शब्द कां घात्वथ यहं है प्रति-अपनी ओर, इक न्लभुका हुआ । जव किसी वस्तु का
कोई एक भाग पहले गोचर हो ओर फिर आगे उस वस्तु का ज्ञान हो तव उस भाग
को श्रतीक' कहते हँ । इस नियम के अनुसार सर्वव्यापी परमेश्वर का ज्ञान होने के
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