किशोरिलाल गोस्वामी के उपन्यासों का वस्तुगत और रूपगत विवेचन | Kishorilal Goswami Ke Upnyaso Ka Vastugat Aur Roopgat Vivechan

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Kishorilal Goswami Ke Upnyaso Ka Vastugat Aur Roopgat Vivechan by कृष्णा नाग - Krishna Nag

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्‌ *्टोरो' इत्यादि के नाम से प्रचलित हैं ।” बलोरीव ने मपनो पुस्तक “प्रोग्रेस भॉफ रोमास” में कहा है कि *उपयास” सपने पुग के जपजोदत घोर परम्पराधों का चित्र है, जिस समय वह रचा गया है ! उचका कहना है कि उपन्यास को सफ्तता इसी में है शि वह जिन परिचित वस्म तया दर्यो का चिव करे, वे सामान्य दा जावें झौर पाठकों को उपन्पातत पढ़ते समय ययायें वा धामास होने लय ।* मिधवन्पुप्रों के दन्दों में “जितने परिश्रम स दस ग्रय बनाय डा हैं, उतने सै यदि एक दने हो घायद घपने चमत्कार के कारण वाल को करालता का दह चिरकात ठक घामना कर सेके 4 , *एन्साइक्लोपो हिमा दिटेनिका' के घनुसार उरन्दाठ” एर वहक्ष्याटै, ओ १ एटधक्णः (४८ प्ल ४७्प्‌ 0 {315८ उर्दाफरपा5 प्ट पण्‌) 9 १ ५८७ 15 09! एटा (069 १०४८ ०3116 प वण्टप्णणऽ एणा 12५ ५5 ५ ता ड ० 12५ 20०४०त्‌ऽ 1) शिण्छऽ = 50०८ ८५००5 वात तलएत्मट {81560००05, ०१०रत्व्‌ 25 ण्ट {ठर पील एणा०5८ त हह201:5108 3 गद 00 0पीदा+ 15६ 3118039८. 20005 पि ०96 २१८ 2८०८1०8 9) ५9161 0 एण 5०6०065 09४ ९12५, 5 णण १0 पठण ५1१ फणा कृलााछण कह जफल$ 26 तपृण उपवे इड 76005 0 पऽ इच्छ वफलृण्पेद्‌ पण पप्य) प कणप 8159 65 0 (06 हिपड्रा।5 उस किघाजप 5] दण छ वण 2550 फट 00 को, ०००८८३18 3 लवण 1३४ 3 गाठ 6 नत गिफणः सील ८ ८905८ घिरड 9८्८घ धब्ेंट उपवघ$ ८0०5 प्पप्ा है हच्८ 00 हप्घ एटा टवाट्र 85 पावकम ८०७८८ एवएलहड एिएणेएच्ट कु छाफछीट्ड एा35 9८ (256 25 ही 0फ5 फट एं८५; या पृणणत्पे 35 4111123 त. 11. 170 उष्‌ लटः ० धो पठणल न 1जव्‌ऽ कट पला (छल टॉएएबच्छाड सिाउ घाट 1१0 541००, १ गध 9, ए 220) म्‌ ^ पणत] 15 > एष्य कष्ठ [त वपते फडपण्लया वण्ते छा प्यत्ञयण 98.185 .. क, 1 मत टी 216 1595७ 22८ पदता कालो) फल्या ॥ड€ल्य पणर 15 11#ला\ 10 026 १1 111, पद णलटिणिह छण्य <€, अणति) 35 ऋ 200 0 छण (८०१5 ० 16 फणण्ल१्दड ठते पठ एट्त्तण्यरछ प 5 10 एण दता उप्टफ्ट इए 50 [71.31.11 5 {0 पैतपप्णट एड ।ताए फ़्टाइणवपएघ (ध वत्व ककय ५८ यट ग्ट्भ्पपाषट) पय ता) 15 उच्ची एणघ 9८ घर मीत्टाहते 9) 1०९5 ० १७०८७०८७ ¢ त~ §त05 शा पात शफ 25 प पद) ४लाल एणाः रल (षण्णा ए०प2प८्८) + ३ समिथयदघु मिश्रक विनो, माय चहुवं, पृ १४१॥




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