काव्य रूपों के मूलस्रोत और उनका विकास | Kavy Rupon Ke Mulasrot Aur Unka Vikash

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Kavy Rupon Ke Mulasrot Aur Unka Vikash by शकुन्तलादूबे - Shakuntaladube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ १४ - € $ चतुथ खड बन्धाबन्ध कान्य त्रयोदश म्रध्याय : बन्धावन्ध काव्यभ्मौर्‌ उसके प्रकार ५३१ बन्धाबन्ध काव्य का स्वरूप, मिश्र काव्य उसके श्नन्यान्य रूप, नाटचात्मक, स्वानुभूति प्रधान, श्रास्यानप्रधान; मिश्चकान्य के विभिन्न रूपों का स्वरूप (१) नाट्यात्मक --गीति-नाटय श्र उसके. तत्व-भावात्मक वस्तु, कथोपकथनात्मक डौली, श्रात्माभिव्यंजना ; श्रंप्रेजी के (लिरिकलड़ामा) का प्रभाव, हिन्दी के गीतिनाट्य, प्रसाद का करुगालय, महाराणा का महत्त्व, गुप्त जी का अ्ननघ; उदयंकर भट का मत्स्स- गन्धा, राधां ग्रौर विश्वासिव्र; निराला कौ पच्वटी, केदार- नाथ मिश्र “प्रभात” का संवर्तः नटकीय गीत, उसके दो प्रकार, स्वगतकथनात्मक, कथौपकथनात्मके, भ्रग्रेजी का ““डभेटिक मोनौला ` हिन्दौ के कथोपकथनात्मक नाटकीय- गीति, (२) स्वानृभूति प्रधान, उसके दौ रूप श्रात्म- निवेदनात्मक, द्वापर श्रौर श्रतिगीतात्मक यशोधरा, (३) ग्राख्यानप्रधान, हिन्दी के प्रास्यानप्रधान मिश्रकाव्य, गुर्करल, वाप । उपसंहार ध ति .... ५७७ सहायक ग्रंथो की सूची .... का .... ४८२ . संस्कृत के सहायक ग्रंथ । . हिन्दी के सहायक ग्रंथ । . हस्तलिखित ग्रंथ । . पत्र-पत्रिकाएँ । ५. अंग्रेजी के सहायक प्रय । ६. संस्कृत साहित्य पर भ्रंग्रेजी के ग्रंथ । ०८ ५ € „~<




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