श्री गौतम - पृच्छा | Shri Goutam-prichchha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1024 KB
कुल पष्ठ :
43
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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गोतम ५२
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न ८००१८८१०
दगाबाजी कर के घना पाप पारं । इणो कम सजोगं चिजोग पारे॥ ३६ ॥
प० | १८ ॥ या० | भाखों श्री जिनराज, कुरूप होड वडा । कान ? कम परमात्र, परावर णह गति जीवडा ॥ ४० ॥
उ० ॥ सो० ॥ भाखें श्री भगवान, सुन वच्छ } गौतम माहरी । काटवान ना काम, कीधा ज पृव भवे ॥ ४१॥
प०।।१६।।मो०॥ कहे गौतम कर जोडि,भो ज्ञानी प्रकारिये । तनमे हो घग गोग, कौन ! कमं प्रभाव त ॥४२॥
उ०॥ सारगी-छन्द! ॥ महावीर थीर जिन एह तो बताई है । सुन बच्छ आत्मा जिन कम में लगाई हे ॥
धम जान कप वाव तानक खुदावन । इवा कम करी जीव घणा गग पावनं ॥४७२॥
प०।।२५।मा०॥ हाथ जोड़ी कट ण्म, सतगुर ज्ञान प्रकाशिय | मीट्। बाल जीव, सब ने लागे श्रति बृगा ॥४४।
उ०॥ भलणा-दछन्दः॥। श्री वीर कटै सुन दो वन्छ गोतम, जो नर इन्द्री पोपत हे ।
जीव की घात कर निशदिन; पर आत्म कु नित्य सोपत है ॥
जीव को मांम मग्वे निश दिन, पर जीवां निज रोपत है ।
भगवन्त कहै इम पाप थकी, वचन अ्रनगमत आ-गोपत ह ।४५॥।
प्र०।।२१।।यो ०।। गौतम कहें जिनराज, मिथ्या सूत्र जे पढ़े । बलि परूरे आप, मिथ्या सुचि किन कम थी ॥४६॥
उ०।चावाना-छन्द।। परमुजी कटं मुन हा वन्छ गोनमःय ही आगम की वानीहे।
जो कोड परजीवा पे कपेः मुकुटी शीम चहानी ह ॥
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