श्री गौतम - पृच्छा | Shri Goutam-prichchha

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Shri Goutam-prichchha by पण्डित मुनिश्री छोटेलाल जी महाराज - Pandit Munishri Chhotelal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 गोतम ५२ ----~ == व न ८००१८८१० दगाबाजी कर के घना पाप पारं । इणो कम सजोगं चिजोग पारे॥ ३६ ॥ प० | १८ ॥ या० | भाखों श्री जिनराज, कुरूप होड वडा । कान ? कम परमात्र, परावर णह गति जीवडा ॥ ४० ॥ उ० ॥ सो० ॥ भाखें श्री भगवान, सुन वच्छ } गौतम माहरी । काटवान ना काम, कीधा ज पृव भवे ॥ ४१॥ प०।।१६।।मो०॥ कहे गौतम कर जोडि,भो ज्ञानी प्रकारिये । तनमे हो घग गोग, कौन ! कमं प्रभाव त ॥४२॥ उ०॥ सारगी-छन्द! ॥ महावीर थीर जिन एह तो बताई है । सुन बच्छ आत्मा जिन कम में लगाई हे ॥ धम जान कप वाव तानक खुदावन । इवा कम करी जीव घणा गग पावनं ॥४७२॥ प०।।२५।मा०॥ हाथ जोड़ी कट ण्म, सतगुर ज्ञान प्रकाशिय | मीट्‌। बाल जीव, सब ने लागे श्रति बृगा ॥४४। उ०॥ भलणा-दछन्दः॥। श्री वीर कटै सुन दो वन्छ गोतम, जो नर इन्द्री पोपत हे । जीव की घात कर निशदिन; पर आत्म कु नित्य सोपत है ॥ जीव को मांम मग्वे निश दिन, पर जीवां निज रोपत है । भगवन्त कहै इम पाप थकी, वचन अ्रनगमत आ-गोपत ह ।४५॥। प्र०।।२१।।यो ०।। गौतम कहें जिनराज, मिथ्या सूत्र जे पढ़े । बलि परूरे आप, मिथ्या सुचि किन कम थी ॥४६॥ उ०।चावाना-छन्द।। परमुजी कटं मुन हा वन्छ गोनमःय ही आगम की वानीहे। जो कोड परजीवा पे कपेः मुकुटी शीम चहानी ह ॥ र ---- 6 > -------~ व नि ~~ = = -~-- ---- ------ ~




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