जैनेन्द्र की कहानियाँ भाग - 9 | Jainendra Ki Kahaniyan Bhag - 9

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Jainendra Ki Kahaniyan Bhag - 9 by धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका १४ प्रति उतने ही तत्पर हूँ, जितने देश की अ्रथवा विदेश की दूसरी भाषाश्रों के मान्य लेखक समे जा सकते है । उर यही है कि कला श्र शिल्प यदि श्रपने श्राप में साध्य बनेंगे तो स्रदायमी ऊपर आ जाएगी, ्रात्मदान अ्रकुण्ठित हो नहीं पाएगा ! कला की जडावट-सजावट का, उसकी धिस- मांज का कहीं कुछ श्राधिक्य श्र श्रतिरेक तो नहीं हो रहा है, ऐसी शंका होती है । लेकिन प्राणवेग इस कौशल की अ्रतिश्यता के लिए श्रवकाश नहीं छोडने वाला है श्नौर भ्राज के विशव का, या हर कीं का, प्राकुलित एवं विकलित जीवनं स्वयं इस श्रतिरेक का उपचार करता चला जा सकता है ।




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