आत्मविलाष स्तवनावली | Aatmavilash Stavanawali

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Aatmavilash Stavanawali by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चतुधिदाति जिनस्तवन. द्‌ श्मातम रूपी । अवर न कोट साष्ट ॥ सं० ॥ चा०॥8उ॥ ति श्री. चन्छग्रननिनस्तवनम्‌ ॥ श्री सुविधिनाध जिनस्तवन । सुविधि जिन वंदना पापनिकंदना जगत आनंदना युक्ति दाता। करम दल खेमना मदन विदं मना धरम धुर मंमना जगत ञाता 1 अवर सड वासना ठोर मन व्मासना तेरी उपासना रंग राता! करो सुर पालना मन मद गालना जगत जालना दे्‌ साता ॥ सु ॥२॥ विविध किरीया करी मूढता मन धरी एक परेलरी जगत चजूढ्यो । मान मद मनधरं। सुमति सव परद्र जेन मुनि जेष धर मूढ पूव्यो ॥ ही एकंतता अति ही छरदंतता नास कर संतता छःख खूब्यो ॥ संग सिद्धि कही झान किरीया वही दूध साकर मिली रस ॥ न




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