आत्मविलाष स्तवनावली | Aatmavilash Stavanawali
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चतुधिदाति जिनस्तवन. द्
श्मातम रूपी । अवर न कोट साष्ट ॥
सं० ॥ चा०॥8उ॥
ति श्री. चन्छग्रननिनस्तवनम् ॥
श्री सुविधिनाध जिनस्तवन ।
सुविधि जिन वंदना पापनिकंदना
जगत आनंदना युक्ति दाता। करम दल
खेमना मदन विदं मना धरम धुर मंमना
जगत ञाता 1 अवर सड वासना ठोर मन
व्मासना तेरी उपासना रंग राता! करो
सुर पालना मन मद गालना जगत
जालना दे् साता ॥ सु ॥२॥
विविध किरीया करी मूढता मन धरी
एक परेलरी जगत चजूढ्यो । मान मद
मनधरं। सुमति सव परद्र जेन मुनि
जेष धर मूढ पूव्यो ॥ ही एकंतता
अति ही छरदंतता नास कर संतता
छःख खूब्यो ॥ संग सिद्धि कही झान
किरीया वही दूध साकर मिली रस
॥ न
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