छठा बेटा | Chhatha Beta

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.46 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)की तरह स्पष्ट कद देता कि में पिता जी के साथ एक मिनट तो कया
एक सेकेएड भी नहीं रह सकता 1!” लेकिन क्योंकि दयालचन्द सामने नद्दीं
पे, इस कारण पडित बसन्तलाल अपने श्रवचेतन मन में इस विचार को
इसेये हुए है कि यदि उनका छठा वेटा होता तो वह श्रवश्य उनकी सेवा करता ।
जब कि यथार्थ में यदद बात नहीं है । सूदम हेत्वाभास (3010116 दी
(इस नाटक का आधारसूत-तत्व है। छठा वेठा मानव की उस श्राकाक्षा का
ल्प्रतीक है जो कभी पूरी नहीं होती ।
*ि. श्रश्क जी बहुत सतके कलाकार ह। उनकी स्वना में लापरवाही या
का भाव कहीं भी नहीं दीख पड़ता । अपने श्रालोचकों को उंगली
का. वे कही भी नहीं देना चाहते | प्रस्तुत नाटक में भी
उन्हे यह ध्यान वरात्रर है कि कथानक का मुख्य भाग पढड़ित जी के स्वम
'हिकिरूप से रड्रमय् पर उपस्थित किया जा रहा है और वे इस बात को
पी जानते हैं कि स्वप्त कभी स्पष्ट और क्रमपूर नहीं होता, बल्कि हमेशा
( प्रठ00७ > आर अस्प्टसा होता है । कहीं पर बहुत चटक और
[क्रेंही अत्यन्त “आाउट आफ फाकस' ।. रड़मय्ध टेकनीक का भी उन्हें
तश्रपनें श्रालोचकों से श्धिक जान हैं । श्र यही कारण हे कि उन्होंसे
नाटक का अन्तिम दृश्य छायाश्रों के रूप में प्रस्तुत किया है। क्योकि
ता रैस्वप् वरावर जारी है और अब समाप्ति पर है, इस कारण वह शुँधला
ने श्त्रौर अस्पष्ट सा पड़ने लग जाता है । व्यक्ति नहीं, बल्कि छाया्मूतियाँ
दी द्रिब स्वप् मे घूमने-फिरने लगती है. श्र केवल उनके स्वर से ही श्रनुमान
फेरेंकिया जा सकता है कि यह श्रसुक-श्मुक व्यक्ति है। अश्क जी के इस
नाटकीय-कौशल ( 51806 ) पर उन्हें बधाई देने की इच्छा
ये (होती है । हिन्दी नाटकों में यह ढग का एक नवीन प्रयोग है ।
मर नायक इस छाया-मय कथा; उसे पुष्ठ करने वाले. हास्य व्यग्य-
रविरंपू सम्बादों तथा श्रमिनय-स्थलो के वल पर दड़ी तेजी से चलता हन्ना
मे भाहिमारी उत्सुकता को चर्म-विन्दु पर ले जाकर श्रत्यन्त अप्रत्याशित रूप छे
दर
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