कृषि और किसान उत्तरी भारत में | Agriculture And Peasants In Northern India

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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0 फलम्‌ उरके ये उपयुक्त क्षेत्र का नाम डा छं कौन त्थो नम प्रिय * ~ प्रेय लीं णन्‌ नीलार्‌ ~ वारीणमु वरीष्दि ~ प्लेहीयमु ऋः ~ इध्लुरााऊटन्‌ , दक्षुधग किन्‌ दल -- तुलराऊट्‌, वना किन्‌ भमरकीश के टीकाकार क्षी रस्वामी ने मसर ॐ येत के लिये मासरीण” 8 जताया पाया हद | अवैर शाऊ के क्षत्र के लिये शाकशाकट एव॑ शङचाष्किन शब्दौ को पीदया है | थे तब्द अमरकोश वै नहीं (दये गये रै | ¢ । इससे यह स्पष्ट दवेता दै ¢ कुन भिलऊर अर के काल से लेकर । । ठीं- । 2वीं शताब्दी तक अनाज एवं वाकं ॐ दइूषिषि हेतुं पेतं की उपयुक्तता पर उत्तरोतर विशेष ध्यान दद्या जनै लणव | विशिन्‍न फसलों ॐ (लिये उपयुक्त शव का परीक्षण कि वि दि वि. कि. हि 2 कह का = ति) हि विवि दी 02४ ॐ 8 1; ऊ | एक तरल , व्यावदाीरक विधि सिलती है ।. इसके अलुलार अनाज के बीजों को तः कि पय नो शि भः भः वारि किः प = सनका श, वकम) कषण पि = मेनन अ किवं चे (क दितः शिरे = क्के क्ण तः को कदम दनाः कम्‌ |~ अनरक्कैश 2.98 पर टीका। मरन; ककः म श सपा




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