प्राचीन भारतीय वेश भूषा | Prachin Bhartiya Vesh Bhusha

Prachin Bhartiya Vesh Bhusha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १ ) रोपियां वहुधा विदेशी पहनते थे । निम्नलिखित प्रकार की टोपियां सांची के अर्धं चिन में देख पड़ती है--छुलाहनूमा टोपी, चौकस गोल किनारे वाली टोपी, घीच से कटी झालरदार टोपी, नीचे वार की तुर्कीटोपी नुमा टोपी, पंजको से सजा ष्ुलाह, चोटीदार टोपी । सिर कभी-कभी फीते से बाधे जाते ये। स्त्रिया सकच्छ साड़ी और 'कमरवंद पहनतीं थी । एक दूसरी तरह की साड़ी में एक' भाग कमर में लपेट लिया जाता था। कभी-कभी चूनन बगल में खोस ली जाती थी। ओढ़नी मोढने फ निम्न लिखित प्रकार थे--घोघौ के आकार कौ योढ़नी, दोहरे किनारे फौ ओढनी, दोहरी ओढ़नी, पेचीदार ओछनी, पंखाकार'ओढ़नी, वद्धी छकती हुई किनारेदार ओठनी। स्त्रियां कभी कभो पगड़ी और टोपी पहनती थीं । एक जगहू एक स्त्री खौद पहुने दिखायी गयी है । मयुरा मौर कोसम से मिली मट्टी कौ स्त्री मूतियां कचुक और गहने पहनती है। इंडियन इंस्टिट्यूट म्यूनियम, आक्सफर्ड, में एक ऐसी ही सूति गहनो के सिवाय विना वाह्‌ फा कचुक, जो केवल वायां कषा ढाकता है, और कमरपेटी पहनती हूं । दुपट्टे एक या उससे अधिक हूं । साची के अरे चित्रों में सिपाही इत्यादि कंचूक पहनते है । घनुर्घारी पूरे दोहु का कंचुक त्तहमततुमा धोती, फमरवंद भौर साफा पहनते थे । पैदल सिपाही घनुर्घारियों की तरह वस्त्र अयदा कमरवद से वंघी जांघिया पहनते थे । विदेशी शक पूरी बाहू का कंचूक, तथा फमरबद पहनते थे और अपना सिर रूमाल से बांघते थे । एक जगहू एक बिदेशी अघबहियां कंचुक, जांघिया मौर यूद पहुने दिखाया गया हैं । विदेशी यूनानी चप्पल भी पहनते थे । ‡ , ब्राह्मणों का फौपीन घाघरेनुमा होता था और थे बैककष्य पहनते थे । ऋषि पत्नियों का भी वैसा हौ पहुरावा था । उत्तर और दक्षिण भारत की वेश-भूषा में फुछ स्यानिक विशेषताएं थीं । असरावती के इस युग के भर्घ चित्रों में सदृगृहस्थ लंबोतरा साफा, घुटनों तक को घोती और शव्वेदार फमरबंद बांघते थे । सहाराष्ट्र में घोती छोटी होती थी और कमरबंद उसेठे दुपट्टे के होते थे । भाजा फे अर्घ चित्रों में एकः अमरक्षक अटपरी पगड़ी लौर लहरियादार कंचुक पहने है। एक द्वारपाल लवी धोती कमरबद, पटका तथा शगुवददार पगड़ी पहनता है और 'एक सिपाही हलकी पगड़ी, वैकक्ष्य, सरकती धोती और कमरबद पहनता है । एक जगह घुमावदार पगड़ी आयी हैं । स्त्रियों के शिरोवस्त्र तरह-तरह के होते थे यथा सिर पेच सहित गोढनी, कर्द तहो फो भारी मोढनी, दतिदार पगड़ी, गोल मूंगरीनुमा शिरोवस्त्र, फीतेदार जूड़ा और कान तक पहुंचती पगड़ी। मंजदा के ९-१० नं० को लेगों के भित्ति चित्रों में हलकी पगड़ी, अघवहियां कंचुक और मंगा भाते हे ¦ { स्वौ सन्‌ के प्रथम तीन सौ वर्षो सं भारतीय जोवन और संस्कृति सें काफी उच्ति हुई \ इस युग भ बृहत्तर भारत मौर मध्य एक्षिया भे भारतीय उपनियेश बने और भारत और रोम मेँ रत्नो, गध द्रव्यो, स्फटिक के बरतनों और कपड़ों का कीसती व्यापार बढ़ा । युग में भारतीय वेश-भूषा के इतिहास की प्रचुर सामग्री हमें गंघार फो मूतियो मौर मर्धं चित्रों




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