यूरोप का आधुनिक इतिहास [भाग -1] | Europ Ka Adhunik Itihas [Part -1]
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
430
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सत्यकेतु विद्यालकार - Satyaketu Vidhyalakar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यूरोप का आधुनिक इतिहास
पहला अध्याय
विषय प्रवेश
१ श्रस्तावना
इस इतिहास का प्रारम्भ हमने सन् १७८९ से किया हैं । इस साल फ्रास मे राज्यक्रान्ति
का सूत्रपात हुआ था । इस घटना को हुए अभी डेढ सौ वर्ष से कुछ ही अधिक समय हुआ
है। डेढ़ सदी के इस थोड़े से समय मे यूरोप ने जो असाधारण उन्नति की है, उसे देखकर
आज्चय होता है । राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यावसायिक, धघार्मिक--सभी
श्षेत्रो मे युरोप में एक युगान्तर उपस्थित हो गया है । भठारहवी सदी के अन्तिम भाग
में फ्रेच राज्यक्रान्ति के श्रीगणेण के समय यूरोप में एक भी देश ऐसा नही था, जहा
लोकतन्त्र घासन हो | प्राय सब देवों मे वणक्रम से आये हुए एकतन्त्र स्वेच्छाचारी निर-
तुय राजा राज्य करते थे । उनका शासन सम्बन्धी मुच्य सिद्धान्त यहं था--“हम पृथ्वी
पर वर कै प्रतिनिधि हे, ओर हमारी इच्छा ही कानून हं 1 समाज मे ऊच-नीच का
भेद विद्यमान था। वुछ लोग ऊचे समझे जाते थे, क्योकि वे कुलीन घर मे पैदा हुए थे ।
टूसरे लोग नीचे समझ जाते थे, क्योकि वे जन्म से नीच थे । कल कारखानों का विकास
उस समय नही हुआ था । रेल, मोटर, तार, हवाई जहाज आदि का नाम तक भी
वोट नहीं जानता था । सूत कातने के लिय तकुवदे और चरख काम में आते थे। घोडे
या बल से चलनेवाली गाडिया सवारी के काम आती थी । समृद्र मे जहाज चलते थे
पर भाप व बिजली से नहीं, अपितु पाल व चप्पुओ से । कारीगर लोग अपने घर मे वे
चर पुराने ढग के मोटे औजारो से काम करते थे । यान्त्रिक-दावित से चलनेवाले विणाल
चा-ग्वाने यगेप मे उस समय त्तक नहीं वने थे । स्त्रियों को स्वाधीनता नहीं मिली थी ।
उनवा काय-क्षेत्र घर था और घर से वाहर वे वहत कम दिखाई देती थी । धर्म के मामले
में लोग बट सकीण और असहिप्ण थे। प्रोटेस्टेन्ट और रोमन कंवोल्टिक लोगो का सघप
अभी समाप्त नहीं हुआ या। आजकल के ज्ञान विज्ञान उस समय विकसित नहीं हुए थे।
जिन वातो पर आज युगेप गदे वरता है, उनका प्रादुर्भाव उस समय तक नहीं हुआ था ।
ये नदी के इस थोटे से समय में कितना भारी परिवतेन हो गया है। इस वीच में
पाश्चात्य ससार ने बंसी आध्चयजनव उन्नति वी है । आज यूरोप मे एक भी ऐसा देदय
नहीं ह, जहा विसी न विसी रूप में लोकतन्त्र घासन विद्यमान न हो। वदात्रम से आए
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