रीति काव्य की भूमिका तथा देव और उनकी कविता | Reeti Kavya Ki Bhoomika Tatha Dev Aur Unki Kavita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तमसो मा ज्योतिर्गमय रीतिकाव्य की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि राजनीतिक स्थिति :--- चाज पं रामचन्दर शुक्ल द्वारा किया इरा हिन्दी साहित्य का काल- विभाजन प्रायः सर्वसान्य-सा दी हौ गया है-श्नौर. वास्तव में सवथा निर्दोष नहोते हुए भी, वह बहुत कुछ संगत तथा विवेकपूर्ण है । उसके अनुसार रीतिकाल के अन्तर्गत सं ५७०० से सं० १४०० तक पूरी दो शताब्दियां झा जाती हैं | सम्बत्‌ १७०० से १६०० तक भारत का राजनीतिक इतिहास चरम उत्कषं को प्राप्त सुश़ल साम्राज्य की अवनति के श्रारम्भ और फिर क्रमशः उसके पूर्ण विनाश का इतिहास है । सम्वत्‌ १७०० मे भारत के सिंहासन पर सम्राट शाइजहाँ श्रासीन या । सुराल वैभव अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँच खुका था--जहाँगीर ने जो साम्राज्य छोडा था, शाहजहाँ ने उसकी रौर भी श्रीचृद्धि और विकास कर लिया था ; दक्षिण में: झ्रहसदनगर, गोलकुण्डा श्रौर बीजापुर राज्यों ने मुगरलो का झाधिपत्य स्वोकार कर लिया था, और उत्तर- पश्चिम में सं० १६९४ में कन्धार का श्धिला मुगरलो के- हाथ में आगया था। अब्दुल हमीद लाहौरी के अनुसार उसका सान्नाज्य सिन्ध के लहिरी बन्दरगाह से लेकर झासाम मे सिलहट तक और अफ़गान प्रदेश के बिस्त के किले से लेकर दक्षिण मे श्रौसा तक फैला ड्या था | उसमे २९ सूबे थे जिनकी झाम- दूनी ८८० करोड़ दास अथवा २२ करोड रुपया थी। देश में झखण्ड शान्ति थी; खजाना सालामाल था । हिन्दुस्तान की कज्ञा अपने चरम वेभव पर थी | मयूर-सिंदासन और ताजमहल का निर्माण हो का था । परन्तु उत्क्ष के चरम बिन्दु पर पहुंचने के उपरान्त यही से निगति का भी आरम्भ होगया था | श्रभरतिहत सुग्रलवाहिनी परिचमोत्तर श्रान्तो में लगातार तीन बार परा- जित हुई--मध्य एशिया के आक्रमण बुरी तरह त्रिफल डर । इन विफलताओं सेन केवल धन-जन को हानि हुई, चरन्‌ सु ल-साम्राज्य की प्रतिष्ठा को भी भारी धक्का लगा । उधर दक्षिण में भी उपद्रव आरम्न हो गणथे। बाह्रे यद्यपि हिन्दुस्तान सम्पन्न और शक्तिशाली दिखाई देता ज्या, परन्तु उसके अन्तस्‌ में श्रज्ञात रूप से क्षय के बीज जड पकड रदे थ । जहांगीर को मस्ती




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