मिलिन्दपन्हो | Milindapanho
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
253
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शव
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७ मिलि-दपञ्डो [ ११४
सल्नपितु सक्तोति, कद्ध पिविनोदेतु ति ? एव वृत्ते अमञ्चा
तुण्डीभरूता रज्ञो मुख आखोकयमाना अटठसु ।
तेन खो प्न समयेन सागखनगर द्वादस वस्सानि सुज्ज
अहोसिं समणन्राह्मणगहपतिपण्डितेहि । यप्थ समणन्राह्यणगहपति
पण्डिता पटिवसन्ती ति सुणाति, तत्थ गन्तवा राजा ते पञ्ट
पुच्छति । ते मव्वेपि पञ्हाविस्सञ्जनेन राजान आराधेतु अस
करोन्ता येन वा तेन वा पकमत । ये अञ्ज दिक्च न पच्छमन्ति
ते सब्बे तुण्डीभूता अच्छन्ति । भिक्खु पन येभूय्येन हिमवन्तमेव
गर्च्छाति । तेन खो पन समयेन कोटिद्ता अरहन्नो हिमवन्ते पल्बते
रबिखततके पटिवसन्ति ।
४--भायस्मता अस्सगुत्तेन भिक्खुखथो सनिपातितो
अथ सो आयस्मा अस्सगत्तो दिन्बाय सोतधातुया मिलिन्दस्स
रञ्यो वचन सुत्वा युग-धरमत्थके भिक्खुसद्क सच्निपातेत्वा भिक्खु
पृच्छि-“अत्या उसो कोचि भिक्छु पटिबलो भिलिन्देन
रञ्मा सद्भि सच्नपेतु कद्ध पटिविनोदेतु ति ? एव वत्ते कोटि
सता अरहन्तो तुष्टी अहोसु ! दुतियम्पि, तनियम्पि खो पुट्ठा तुण्दी
अहोयु ! अथ खौ आयस्मा अस्सरुत्तो भिक्खुसद्ध एतदवोच-
“अत्था, बसो, तावनिसभवने वेजयन्तस्स पाचीनतो कैतुमती
नाम विमाने । तत्थ महासेनो नाम देवपृत्तो पटिवसनि । सो
पटिबरो तेन मिलिन्देन सच्लपेतु, कद्ध पटिविनोदेतु ति ।
५-- महासेन देवधुत्त इधागसनाय याचेसि
अथ सो कोटिसता अरहन्तो युग धरपव्बते अन्तरिता तावतिस
भवने पातुरहेसु । अहसा खो सक्को देवानमिन्दो ते भिक्खू
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