काव्य विवेचन | Kavya Vivechan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६] [ काव्य विवेचन २- मुसकाता संकेत भरा नभ अलि क्या प्रिय आनेवाले है ? -महादेवी आधुनिक ढग से प्रस्तुत वर्षा ऋतु का उदाहरण- जागी किसकी वाष्पराशि, जो सुने में सोती थी ? किसकी स्मृति के बीज उगे ये, सृष्टि जिन्हें बोती थी? अरी दृष्टि एसी ही उनकी दया दृष्टि रोती थी ? विद्व-बेदना की ऐसी ही चमक उन्हें होती थी ? -गुप्त जी ज्योह्स्ना का उदाहरण-- १- कालिमा घुलने लगी घुलने लगा आलोक, इसी निभूत अनन्त मं बसने लगा अब लोक, इस निज्ञाम्‌ख को मनोहर सुधामय मस्कान, देखकर सब भूल जायें दु:ख के अनुमान । ~पर साद २ नीचे दूर दूर विस्तृत था उमिल सगर व्ययित अधौर । अंतरिक्ष में व्यस्त उसी सा रहा. चन्द्रिका-निधि गंभीर । -प्रसाद सखी द्वारा नायिका को विभूषित करने का उदाहरण- माँग संवारि सिंगारि सुबारनि बेनौगृही जु छवानि लौ छावं। त्यौ पद्माकर' या विधि भौर ह सानि सिगार जु स्याम को भावं । रीोझे सखी लखि राधिका को रंग, जा अंग जो गहनों पहिराब । होत यो भूषित भूषन गात ज्यो डॉकत ज्योति जवाहिर पावे ॥ उद्दीपन के प्रकार- उद्दीपन विभाव विषयगत और आश्रयगत दोनो प्रकार का होता है । विभिन्‍न रूप वाले होने के कारण श्ुगाररसमे प्रेमी ओर प्रेमिका दोनो की ओर से उद्दीपन होना अनिवार्य है । य्रथा- दयामा सराहति इयाम की पार्गाहू इयाम सराहत श्यामा कौ सारो एक ही दपन देखि कहे तिय नीके लगों पिय प्यो कह प्यारी । यहाँ दोनो की चेष्टायें उद्दीपन का का्यें करती हैं । उद्दीपन विभाव के दो भेद होते हैं- विषयगत (पावस्थ) और बहिगंत (बाह्य) । पात्र के गुण, पात्र की




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