श्रीधरभाषाकोष | Shridharabhashakosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७ ) अक, तु, इन, इष्एा, अनः उक! र, अ, छान, स्पमान, किप, त, तब्य; भनीय, य, स, इ, ष (संस्कृत क्रम से) अरक!-तृए, सिन्‌! इष्णु) चन) उक) र) ( ण, यण, शु, उ, ) मान, स्यमान ॥ क्किप्‌, त, त्य, अनीय, य, क्यप्‌, ध्य्‌, सत्‌, भि, यङ्‌ उक्ग भरत्या कां प्रयोग अर्थात्‌ इस्तेमालः- ( अकम्णक ) धातु के उत्तर क्तूवाच्यमें अक प्रत्यय होता है भरात्‌ धातु के साथ ्रक प्रत्यय के योग से कहूबोघक शब्द निष्पन्न होताहे श्रक मत्यय के योग से धातु के इकारादि अन्तस्वर के स्थान में झायू इत्यादि होजाता है एवं उपान्त का श दीर्षं आरा होजातारै और इकारादि के स्थान में एकारादि दोजाताहै, एवं झाकारान्त अकारान्त धातु के पीछे अकमत्पय के पूर्व में य का झागम हो- जाताहै यथा नी + श्रकलनायक; पद + शकलपाठक, भिदू न अकलमेदक) छ + अकल्कारक) दा + अकल्दायक ॥। | ( द=वर्‌ ) धातु के उत्तर तृ प्रत्यय होने से करोवाच्य होता है त्‌ प्रत्यय के योगसे धातु के श्नन्त्य रौर उपान्तिम दकारादि के स्थाने एक्ारादि होताहै यथा जि+तृ= जेता, नी + व॒=नेता, स्तु + तृ-स्तोता, क + दकता, ह + वृता आ, हु +- त्=प्राहता, चिद्‌ + त~डेत्ता, भिद्‌ + ठ=भेत्ता ॥ ( इन्‌=णिन्‌ ) धातु फे परे कठवाच्य मेँ इन्‌ प्रत्यय होता है इन्‌ प्रत्यय के योग में धातु के इकफारादि अ्न्तस्वर के स्थानें आय्‌ पश्ति होजाताै एव उपान्त केभको श्रा हेजाता है मौर इकारादि के स्थानम एकारादि होजाताहे एवं भकारान्त धातु के उत्तर इन्‌ प्रत्यय के परे यकार का भागम होताहे यथा शी +इन्‌= शायी, वद्‌ + इन =वादी) भिद + इन्‌=भेदी, स्था + इन्‌-स्थायी,! दा ~+ इन्‌=दायी, पा ~+ इन्‌=पायी) या ~+ इनन्यायी ॥। ( इष्णु ) चर; सह, षू, निर) भा, कृ भौर करे एक धातु के उत्तर में कदैवाच्य प हषणु प्रत्यय होताहै शा पर्ययं के योगसे धातु के भन्त भौर उपान्ते इंकारादिं एकारादि होजाताहे यथा चर ~+ इष्यान्वरिष्ण) ष्‌ + ?ष्ण=षदिध्ण; भले, $ ~+ इष्णर्मलंकरिष्णु इत्यादि ॥




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