अलंकार - पीयूष | Alankar - Piyush
श्रेणी : भाषा / Language
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
427
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. रामशंकर शुक्ल ' रसाल ' - Pt. Ramshankar Shukl ' Rasal '
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ४ )
१--प्रथम कुछ श्ावश्यक, व्यापक ( सब साधारण ) घोर
स्वामाविक उपमा झ्ादि श्रलंकारों की उत्पत्ति हुई थी, फिर उनके
विलाम या विरोधी रूप षनाप गण ध्योर उन्हें स्वतंत्र धलंकार मान
कर पृथक् स्थान दे दिया गया ।
२--कुछ ध्रलंकारों के झेंगों का विपयय प्रथवा परिवतेन कर
दिया गया, शोर यों कुछ नये अलंकार रच लिये गये ।
३--दो श्रलंकारों के मिला कर एक नवीन धलंकार की
कटपना की गई । हा, यह रो ती विशेष रूप से पल्लवित ध्योर पुष्पित
न हो सकी, श्रोर केवल कुछ दो ध्र तं कार इसके हारा कदिपत किप
गप, श्रोर कन्चित् इते संकर श्रथवा संखष्टि का पक विशिष्ट रूप
ही मान कर श्ाचार्या ने इसे विकसित नहीं किया |
४--व्याकरण, न्याय एवं दर्शन शाख्रादि के कुछ मूल सिद्धान्तो
कै प्राधार पर कारक-दौपक, देहरी-दीपक, यथाक्रम ध्संगति एवं
प्रमाणादि श्रलंकारो की कदपना की गई । इसे हम पने पु्वाधं
में दिखला दी चुके हैं ।
घाव दम इन उक्त तथा इनसे सम्बन्ध रखने वाली बातों के
ध्यान में रख कर यदि चाहे ता भलंकारों का प्रच्छ विकास कर
सकते है । हमने पेखा करने का कुछ प्रयज्ञ कियाभी हे जे भरबध्राप
मददानुभावों के सन्मुख, जैसा भी कुछ है, उपस्थित है । हमें खेद है
कि विस्तार-भय से हमें झभी बहुत सी बातें यहाँ छोड़ देनी पड़ीं
श्मौर बहुत सी बातों के केवल संकीणं रूप में ही रखना पड़ा ।
तो भी हमें विश्वास है कि दमारे सहदय-पाठकों के लिए यह
पर्याप्त होगा । सम्भव है कि दम इस ग्रन्थ की द्वितोयावृत्ति में
इसकी ऊनता की पूर्ति करने का प्रयत्न कर सकें ।
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