प्रमुख देशों की विदेश नीतियाँ | Pramukh Deshon Ki Videsh Neetiya

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Pramukh Deshon Ki Videsh Neetiya by डॉ. मथुरालाल शर्मा - Dr. Mathuralal Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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108 विदेश नीतियाँ 1. ब्यक्तिगत चर समूह (1०तांधंतणशा एवा} --व्यक्तिगत चरो के बरन्तयेत सीति निर्माता के समस्त पहलुमो को सम्मिलित कियां जाता है जैसे उसके मूल्य, योग्यता, पूर्व-मनुभव यादि । व्यक्तिगत चरो के उदाहरणों मे फॉस्टर के धामिक मूत्प (एरला्ट०ण्५ ४२४९5), डिगॉल के ्यानदार फौत कौ दुरदष्ट (४७१० 0 उानान्ऽ ०६) और खुश्वेव का राजनीतिक चामुं प्रादि प्रमुख हैं । की 2 सुमिका चर (फण० शाशिशात5)--इसके अन्तर्गत कर्मचारियों का बाहम व्यवहार आता है जो उनकी भूमिका पर निर्भर करतः है । व्यक्तिगत विशेपताएँ चाहे कुद भी हौ परन्तु भूमिका घारणकर्ता का वाह्य व्यवहार तो प्रवट अवश्य होगा । उदाहरण के लिए श्रमेरिका का सयुक्त राष्ट्रसघ में कोई भी राजदूत हो, उसे सुरक्षा परिपद्‌ श्रौर महासभा मे अमेरिका के हितों एव स्थिति की रक्षा करनी होगी । 3. राजकीय चर ((0४९श१९०६१॥ 91120125) --विदेश नीति पर कार्यपालिका और व्यवस्थापिक्रा के सम्बन्धो का प्रभाव राजकीय चरोके कायेकबौ प्रदर्शित करता है । 4 प्रराजकौय या समाजीय चर (प०ा-6णलापक्रलाातो ० उकम $थ 901९5) -- इसके श्रन््गेत समाज के ग्रराजकीय पटहनुओ कौ सम्मिलित किया जाता है जो बाह्य व्यवहार को प्रभावित नरते हैं। समाज की राष्ट्रीय एकता का अश इसके औद्योगेकरण की सीमा ग्रादि समाजीय चर है जो कि राष्ट्र वी वाह अ्भिलापाशो और नीतियों के सार में योग देते है । 5 स्पवस्यित घर (595(6ताश्र्ंट प्श्नशाज९ 5) --समार्ज के बाह्य पर्यावरण कै किमी मानवहीन पक्ष को इसमे सम्मिलित श्रिया जाता है। “भौगोलिक वास्तविक्ताए भ्रौर अ्रपने प्रभावशाली श्राक्राता से “वैचारिक चुनौतियाँ' (14९००हा८३। 11911665} व्यवस्थित चरो के स्पष्ट उदाहरण है जो विदेश नीति के कमेंचारियों के निणंयों और क्रियाद्रों को रूप (51206) प्रदान करते है । ये विदेश नीति के पूवं-सिदधान्त की विशेषताएं हैं। इनका (चरों का) सापेक्षिक महत्त्व एवं प्रभाव हैं ! विश्लेषण के स्तरों में व्यवहार को कोई एक ही खर प्रभावित नही करता, वतिकः व्यक्तिगत, राजङीषप, ममाजीय श्रादि अनेक चर अपनी भूमिका निभाते हैं । इन विभिन्न प्रहार के चरो के समूहो मे किसको कितनी प्राथमिकता दी जाएं, इसका पता लगाना भ्रत्यन्त ही कठिन कार्य है । इस वढठिनाई से बचने के लिए रोजेनों का मत है दि वास्तविक परिस्थितियों में मस्तिप्व द्वारा कुशलता एवं चतुराई से सचालित चरो पर निर्भर करना होता है । मस्तिष्क में परिस्थिति के धनुसार समीकरगा लागू करना डोता है । इसके लिए कोई निश्चित गतर (,६१॥८ (०१४12) नही दै कर देसी परिस्थिति उन्न हो तो व॑सत कदम उठाया जाना चाहिए श्रते इन सबके लिए मानसि कसरत (२,१९११] ६०४५५७६) को विस्तृत करना होता है ! जो बाघाएं' झाती है उन पर धंयं झौर प्रस्तरंध्दि से काबू पाया जा सकता है ।




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