धर्मरत्न प्रकरण भाग २ | Dharmratna Prakaran Part-ii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
356
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ब्रत के भंग ९
कर्सक्षय कर मोक्ष को गा । खुदरेन सेढ मी चिरकाल सम्यक्र्व ।
की प्रमावना,करता हुआ 'ज्रत॑ पालन करके ( स्वगे को गया )
सुख का भाजन हुआ | इस प्रकार आगमं सुनने भे रसिक चने
हए सुदरोन ने श्र छ फर पाया अंतः हे मन्यजने तुम भी घमेद्रू.से
की चाड़ी रूप घर्से श्र ति में यतनबान वेनो ।
=
` ` इस भति खुददीने सेठ की कथादै; -
मंगपमियश्यारे--बयाण संम्मं वियारेई ॥ ३५ ॥ . | |
अब :दूसरा लिंग कहते हैंः--
रत क्रिया में आक्णन रूप. प्रथम: सेद कहा अब जानना नामक
म & ही । हर
दूसरे सेद का वर्णन करने के छिये ग़ाथा,का उत्तराधे कदते हैं ।
मूर क जर्य:--न्रतों के भंग, भेद और अतिचार भली भाति
~ चारे 1- --ः- -- ~+. ६८ ;
टीका का अथैः--त्रत याने अगतत जिनका कि स्वरूपः
इसी गाथा मे मेद् ब अतिचार कै प्रस्ताव में: कहने , में - आने
चाला है, उनके भंग “दुवि तिबिदेण”- आदि अनेक प्रकारं
उनको सम्यऋू याने शाख्रोकत विधि से जाने याने समके | 7. ^.
यथाः-यहां संग इस प्रकार दैः भंगी) नवभंगीः इकवीस-
ॐ ४) 9
अंगी, उनपचासख भंगी ओर एकसी संताछीख भंगी ।
बयं छः ममी इस प्रकार हैः--
= द्विविध त्रिविधः प्रथम संग, दिवि द्विविध दूसरा भ॑ द्विविष
इकविथं तीसरा भंगः ` इकविध चरिविध चौथा भंग, इकचिधे
त्रिविध पांचा भगः इकविध इकतिध छठा भंगः
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