धर्मरत्न प्रकरण भाग २ | Dharmratna Prakaran Part-ii

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Dharmratna Prakaran Part-ii by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्रत के भंग ९ कर्सक्षय कर मोक्ष को गा । खुदरेन सेढ मी चिरकाल सम्यक्र्व । की प्रमावना,करता हुआ 'ज्रत॑ पालन करके ( स्वगे को गया ) सुख का भाजन हुआ | इस प्रकार आगमं सुनने भे रसिक चने हए सुदरोन ने श्र छ फर पाया अंतः हे मन्यजने तुम भी घमेद्रू.से की चाड़ी रूप घर्से श्र ति में यतनबान वेनो । = ` ` इस भति खुददीने सेठ की कथादै; - मंगपमियश्यारे--बयाण संम्मं वियारेई ॥ ३५ ॥ . | | अब :दूसरा लिंग कहते हैंः-- रत क्रिया में आक्णन रूप. प्रथम: सेद कहा अब जानना नामक म & ही । हर दूसरे सेद का वर्णन करने के छिये ग़ाथा,का उत्तराधे कदते हैं । मूर क जर्य:--न्रतों के भंग, भेद और अतिचार भली भाति ~ चारे 1- --ः- -- ~+. ६८ ; टीका का अथैः--त्रत याने अगतत जिनका कि स्वरूपः इसी गाथा मे मेद्‌ ब अतिचार कै प्रस्ताव में: कहने , में - आने चाला है, उनके भंग “दुवि तिबिदेण”- आदि अनेक प्रकारं उनको सम्यऋू याने शाख्रोकत विधि से जाने याने समके | 7. ^. यथाः-यहां संग इस प्रकार दैः भंगी) नवभंगीः इकवीस- ॐ ४) 9 अंगी, उनपचासख भंगी ओर एकसी संताछीख भंगी । बयं छः ममी इस प्रकार हैः-- = द्विविध त्रिविधः प्रथम संग, दिवि द्विविध दूसरा भ॑ द्विविष इकविथं तीसरा भंगः ` इकविध चरिविध चौथा भंग, इकचिधे त्रिविध पांचा भगः इकविध इकतिध छठा भंगः ~




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