शान्ति - सोपान | Shanti Shopan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका १४५
३. ससायिक-पाठ
तीसरा सामायिक पाठ केवल १२ ष्लोको मे किसी महात्मा ने ऐसा
सुन्दर बनाया है कि ध्यानपुवेक पढने से राग-द्ेष की कालिमा का बोध करा
देता है।
४ भृत्यु-महोत्सव
चौथे मृत्यू महोत्सव ग्रन्थ मे हमने १५८ मूल श्लोको के अतिरिक्त पूवंमे
७ परलोक श्री रतलकाडश्रादवकाचारमे ते भी सम्मिलित करदियेरह। दिन
रात मौत से डरते रहने वाले सप्नारी जीवो के लिए मृत्युमहोत्सव के २५
श्लोक वडे काम की चीज़ हैं। इन लोको को ध्यानपुवंके पटृकर मनन
करने से विवेकी पुरुपो को मृत्यु का भय वास्तव मे दूर हो सकता है ।
५. सर्माधि-शतक
पाँचवाँ समाधिशतक ग्रन्थ सर्वार्थिसिद्धि व जनेन्द्र व्याकरण आदि के कर्ता
श्री पूज्यपाद आचार्य के द्वारा १०५ श्लोकौ मे रचा गया है 1 इस अपूर्व ग्रन्थ
के एक-एक अनुभवपूर्ण श्लोक द्वारा ग्रन्थकर्ता महाराज ने जिस प्रशम-
पीयूष का पान कराया है उसका पता पारुको को इस ग्रन्थ का मनन करने
से ही लेग सकता है। भयकर सासारिक दु खोके कूप मे पङ हुए जिस पुरुष
को अपनी मात्मा के उद्धार की उत्कट इच्छा हो उसको दु खकूप से बाहर
निकलने के वास्ते रज्जु (रस्सी) का काम देने के लिये यह् प्रन्थ नि सन्देह
समर्थ समझना चाहिए । तथा ससार के समस्त दुखो की असली जड का
पता लगाना हो और उस जड को काट डालने की जिसकी इच्छा हो उसका
कायं इस ग्रथ के--
“सूल संसार-दु खस्य, देह एवात्मधोस्ततः।
त्यक्त्वेनां प्रविशेदन्तर्वरि रन्यापतेन्दरिय ॥१५।
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