साहित्य जिज्ञासा | Sahitya Jigyasa
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
165
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)् साद्ित्य-नित्रासा
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दै) व्रि य मिग्नलास्फरतो युलामीकायट् तौक चरणो मदी द्रं रदैगा | इस
कमजोरी कौ जट भी वह् जानता था कि घदद जमी हुई हैं विविध यकार की समाज. मैं
फेली हुई कुरीतियों पर; 'घार्मिक ्ंघ-दिश्यासों पर आर विशेषकर सारी
पूरे जीवन पर | इंतलिए साहित्यिक जीन के यारम्भ में दी शादद डसने स्ये करी शिका
के. लिए. व्राल-ोथिनीः नामक पत्रिका निकालने का दायोडन किया था | विदिकी
दस दान मवति, 'विपस्य विपर्मा एवम योर भारत-दुशाः के माध्यम ठे सामारिक
शरीर धार्पिक विमीपकाओओं के ऊपर उसने व्रमोघर शक्तिकाप्रदार् दिवा था | स्च
द्रिश्चन्रः नातीव सदाचार के उन्थान का संदेश था |
किन्तु चद साहित्यिक ददय कला की साधना से विमुख मी तो नहीं रद सकता
था | ऊप्तु-प्रेममव भारतेन्दु के ग्रवगिनत छन्द रूप आर काव्य में मले दी मध्यदुवीन
काव्य-परिपा्ी के नमूने-से जान पई किन्तु उनकी समीक्ञा परग-पग पर _ काव्य-सादिस्य
में भी मारतेन्डु की अपनी छाप लगाए हुए है । करणा ओर श्ार रत की उन्तु्ठ लें
जिस वेग से भारतेन्छु की लेनी ने प्रवाहित कौं शौर उनमें आन्तरिक भक्ति की चिस
तन्मयता का ग्रतिविम्व दख पड़ता दं वह पकाल्ीन दरवारी कवियों द्वारा लिखित
त्रप् काव्य-राशि से नितान्त मिन्न दं! चिन्नु साय दी उनके द्वारा लिखित ध्रेम-तरंगः
तथा प्रिम-माघुद एवं भेव सदुलः मे लिखी गड श्रनेक रेत रचनार्दै मिलती दै जिनमें
श्ह्ार का रीतिकाललीन रुप दी दीख पड़ता हैं । साघारण जनता भी मारतेन्दु की इस
परकरार कीं स्वना््रो सै प्रायः श्रि परिचित दै ्रौर् सन्मव्तः इसी कारण डिन्दी के
नेक श्रालोचकों ने काव्य-नेत्र में मारतेन्डु को श्ज्ारी कवियों की कोटि में अमवश
स्व दिया दे । इस मकार के झालोचरकों में अनेक ऐसे मी देखे लाते हैं, न्ये लिए,
भारतेन्दु का अन्य झतियाँ,--जेंसे दिवी छा लीला , दान लीला, “तन्मव लीलाः; “मक्त
रमस्व इत्यादि--सादिस्विक तमस्या-सी बन गई हैं | ये तमक नहीं पाते कि श्रेह्ठारी |
कवियों की कोटि में निना उने वाला यद -व्यक्ति कमी-ऊमी इतना दार्शनिक और `
कटर धर्मशील कैसे बन गवा ? किन्तु इस समत्या का इल इतना कठिन नहीं
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द्। इस
श्रोर सबसे पढले समसने की वात तो यदद हैं कि वायू दस्रिचिन्द्र चावारथ नहीं परम
असाधारण प्रतिमाशाली व्यक्ति थे । उनकी वरदानी देन की श्रालोचदा तब तक खरी नीं
उतर सकती चव तक्र कि उनकरा त्रालोच्क उनकी समरत कुतियों का सम्पूर्ण ध शं त्रव्यवन
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श्रीर् मनन कर चुके का दावा न करे । साथ दही चते तक्र उने उनके शरखाधास्य
व्यक्ति के मम को मलीमाँति समस न लिंदा दो ।
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उनका लाॉयन-पारवय स्पष्ट निधारिति कर देता हैं कि वें एक मठिद्ध में प्णुव-झुल्न
~~ मै उन हुए ये गीर यद झुल कई पुश्तों से बल्लम संग्रदाय में दीन्ित था | झुन्न-परम्परा
संयदाय की दी
श्चन नम्वतः व्राल्व-काल में ही इन्हें मी दल्लम संप्रदाय की टीना मिल चड़ी थी 1
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