संत साहेब | Sant Sahib
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ | काशी में हम...
रामानन्द स्वाभी उत्तर भारत में सिद्धो, नाथो ओर योगियों की स्थिति
देख रहे थे । ये लोग काम साधना में ठगकर समाज विमुख हौ गये थे । दक्षिण
भारत में भी शवों का व्यापक प्रभाव था । आलवार बारह थे तो नायनमार
सड़प्तठ । विष्णु काँची भी थी । दिव काँची भी थी । करनाटक में वीर शव
एवं लिंगायतों का गहरा प्रभाव था । स्वामी रामानन्द ने पूरे देशकी यात्रा कर
स्थितियों का अध्ययन किया । अन्त में उन्होंने आचायं रामानुज को अपना
गुरु बनाया । रामानुज तमिल प्रदेश के कान्तदर्शी आचायं थे । उन्होंने गुर
गोष्ठोपणं से मन्व पाया था ।
गुरु गोष्ठीपुणं का अदेशा था मन्व रहस्य गोपनी रह । यहु मन्त्र जो सुनेगा
मुक्त हो जायगा । रामानुज का हदय लोक करुणासे भर गया। वे सबको
मुक्त करेंगे । वे केवल अपनी मुक्ति नहीं पुरे समाज की मुक्ति चाहते हैं । वह
न्त्र स्वार्थी हैं जो केवल व्यक्ति को मुक्त करे । दुखी तो व्यक्ति और समाज
दोनों हैं । गुरु के प्रतिबध के बावजूद यहु मन्त्र सबको मिलना है । सब तक
पहुँचना है। शांकर का सन्यास सवंसुखभ नहीं है। सभी गेरू नहीं पहन
सकते । दंड नहीं धारण कर सकते । त्रिपुंड नहीं लगा सकते । रामानुज को
ऐसा धम चलाना है जो सबके लिये हो । सबजनहिताय । सबजन सुखाय । लोक
कल्याणाय हो ।
रामानुज ञ्चे मन्दिर कीत पर खड़े हैं। भीड़ बढ़ रही है। आचायं
आज सबकी मुक्ति का मन्त्र देंगे । गुरुजी का सन्देश आया हैं. 'ऐसा न करों ।
नकरो। मन्त्र का प्रभाव व्यक्ति में होता है। सामूहिक सिद्धि के लिये मन्त्र
व्यथं हो जाता है । मन्त्र को व्यथ मत बनाओ ।” किन्तु रामातुज हिले नहीं ।
रोक कल्याण के लिये वे गुरु आज्ञा का उल्लंघन करेंगें। गुरु का शाप है
“तुमने मस्त्र रहस्य सवंजन सुलभ किया है । तुम नरकभागी हो ! तुम्हें नरक
जाना होगा) रामातुज गम्भीर हो गये । उनकी करुणा सागर बनकर
लहरानें लगी। मन ही मन गुरु चरणाविंद का ध्यान किया लोक हित
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