संत साहेब | Sant Sahib

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Sant Sahib by डॉ॰ यूगेश्वर - Dr Yugeshvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ | काशी में हम... रामानन्द स्वाभी उत्तर भारत में सिद्धो, नाथो ओर योगियों की स्थिति देख रहे थे । ये लोग काम साधना में ठगकर समाज विमुख हौ गये थे । दक्षिण भारत में भी शवों का व्यापक प्रभाव था । आलवार बारह थे तो नायनमार सड़प्तठ । विष्णु काँची भी थी । दिव काँची भी थी । करनाटक में वीर शव एवं लिंगायतों का गहरा प्रभाव था । स्वामी रामानन्द ने पूरे देशकी यात्रा कर स्थितियों का अध्ययन किया । अन्त में उन्होंने आचायं रामानुज को अपना गुरु बनाया । रामानुज तमिल प्रदेश के कान्तदर्शी आचायं थे । उन्होंने गुर गोष्ठोपणं से मन्व पाया था । गुरु गोष्ठीपुणं का अदेशा था मन्व रहस्य गोपनी रह । यहु मन्त्र जो सुनेगा मुक्त हो जायगा । रामानुज का हदय लोक करुणासे भर गया। वे सबको मुक्त करेंगे । वे केवल अपनी मुक्ति नहीं पुरे समाज की मुक्ति चाहते हैं । वह न्त्र स्वार्थी हैं जो केवल व्यक्ति को मुक्त करे । दुखी तो व्यक्ति और समाज दोनों हैं । गुरु के प्रतिबध के बावजूद यहु मन्त्र सबको मिलना है । सब तक पहुँचना है। शांकर का सन्यास सवंसुखभ नहीं है। सभी गेरू नहीं पहन सकते । दंड नहीं धारण कर सकते । त्रिपुंड नहीं लगा सकते । रामानुज को ऐसा धम चलाना है जो सबके लिये हो । सबजनहिताय । सबजन सुखाय । लोक कल्याणाय हो । रामानुज ञ्चे मन्दिर कीत पर खड़े हैं। भीड़ बढ़ रही है। आचायं आज सबकी मुक्ति का मन्त्र देंगे । गुरुजी का सन्देश आया हैं. 'ऐसा न करों । नकरो। मन्त्र का प्रभाव व्यक्ति में होता है। सामूहिक सिद्धि के लिये मन्त्र व्यथं हो जाता है । मन्त्र को व्यथ मत बनाओ ।” किन्तु रामातुज हिले नहीं । रोक कल्याण के लिये वे गुरु आज्ञा का उल्लंघन करेंगें। गुरु का शाप है “तुमने मस्त्र रहस्य सवंजन सुलभ किया है । तुम नरकभागी हो ! तुम्हें नरक जाना होगा) रामातुज गम्भीर हो गये । उनकी करुणा सागर बनकर लहरानें लगी। मन ही मन गुरु चरणाविंद का ध्यान किया लोक हित




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