मनुस्य का विराट रूप | Manusya Ka Virat Rup
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
314
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मनुष्य कां विराट रूप
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राज्ञाम् ऋपीणां 'घरित्तानि तानि,
कुत्तानि .. पूर्वेरकृतानि पुत्रैः ॥
-जुदचरित मथम श्रष्याय |
संस्कृत के एक नोतिंसार ने भी कहा हूँ कि कुम्भ एफ फुंद्मा भी नहीं
सोच सकता था, लेकिन फुंभज समुद्र पो गये---
“कुम्मोडपि कूपमपि शोपयितु' न शक्तू: ।
छन्मोदूमत्रेन सुनिनाऽमबुधिरेव पीतः 11
श्रधिरथ जोयन.भर रथ रौ हतता रहा; परन्तु कं दिग्विजयी
महारयौ चन गया | इत अकार फे कितने हौ उदाहरणा दिये जा सक्ते
हि 1 भ्त्येक ध्यवित थे श्रपने हदय से इस प्रकार की भावना निकाल देनी
'वाहिये कि जो-कुछ पर, सफते थे, काप-दादे हौ कर सक्ते ये श्रोर श्रवः
+इस फलिपुय में फिसी को कोई सिद्धि मिल हो नहीं सकती । सिद्धि तो
सहुत-से लोगों पो नित्य मिलती दिखाई देत हे 1
अआयुर्वल मी मुख्य नहीं है.--यदि कोई यह सोचता हूं कि थोड़ी
श्रापु में कया हो सकता है, तो, उसे उन महापुरुषों के जीयन कौ झौर ध्यान
देना चाहिये जिन्होंने 'ोड़ी 'चायु में चहुत्त चड़े-वड़े काम विपे है । दंकरा-
चार्प ने ३२ थर्ष की छाय में जितना किया; उत्तना धुत से श्येग ३००
यर्ष की श्राप में भी नहीं कर सकते थे । सन्त शानेश्वर ने १५ वर्ष की
ध्वस्या में गोता को सुप्रसिद्ध ज्ञानेदयरी टीका लिखी । १६--र० घष के
भौतिक जीवन में उन्होंने घ्पने फो श्रमर सता लिया । इतिहासप्रतिद्ध
पराक्रमी सि्मन्दर ने भी श्रपनं ३०-३२ ययं फे जौयन मेषौ सारे वोरता
कै पयं किये चे । वास्तव मे, मनुप्य पने पत्वमं से प्राय को अवधि
घढ़ा लेता हू । चोडे समय में भी यहू झधिक ब्लाम कर सफता हैँ । झमे-
रिया के प्रत्यात घायिप्यररक एडिसन से एक सार विसो ने पृष्टा कि
श्राय श्नायु वना है, तो उतने उत्तर दिया १३५ यरं । मस्तकर्तो म्ले इत
पर झाइचपे हना 1 तव एडसिन ने फिर षहा--यद्यपि वग्ल-गष्एना के
न
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